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रोग ,रोगी और चिकित्सक
रोग उपचार सफलता के लिये चिकित्सक को सबसे पहले योग्य ,दक्ष और मान्य डिग्रीधारी भी होना अनिवार्य है /चिकित्सक को रोगी की आर्थिक स्थिति तथा रोग की अवस्था के साथ रोग के कारण,लक्षण, उपचार माध्यम के साथ साथ औषधिज्ञान भी आवश्यक है /कहने को तो भारत में सर्पदंश का उपचार मंत्रोपचार से भी होता है और चिकित्सालयों में एंटीविनम इंजेक्शन जैसी वैज्ञानिक पद्धति भी अपनायी जाती है लेकिन दोनों उपचार समय सीमा के भीतर ही कारगर सिद्ध होते हैं /झाड़ फूंक टोना टोटका ऊपरीहवा तंत्रमंत्र ताबीज गंडे टंटे ये सब भी भारत में रोगापचार तरीके हैं लेकिन इनकी प्रमाणिकता संदिग्ध है /लोकतंत्र में जनता भी अब सरकार नहीं बल्कि एक डाक्टर का चयन करती है क्योंकि नेताजी अपने को डाक्टर के रूप में ही प्रस्तुत करते हैं /रोजमर्रा ही अख़बारों में लकवा फालिस मिर्गी भूतप्रेत को ठीक करने वाले विज्ञापन छपते हैं और विज्ञापन सरकारों के भी /सवाल यही उठता है कि जब बीमारी ठीक होने के बजाय निरंतर सतत वर्धमान क्रम में अग्रसर हो तो दोषी कौन ?भारत में फैमिली डाक्टर का भी बहुत प्रचलन है लेकिन उपचार करने की उसकी सीमा है और वैसे भी हर बीमारी हर डाक्टर ठीक नहीं कर सकता /जटिल और क्रॉनिक रोगों के उपचार के लिए “विशेषज्ञ” ही चाहिए होते हैं और फैमिली डाक्टर से ऑपेरशन कराने लगें तो मरीज की मृत्यु संभावित है /पेस्टीसाइड्स को पेट की कीड़ों की दवा समझकर खाने और खिलाने पर “करदाताओं और मतदाताओं” को जागरूक होना ही पड़ेगा अन्यथा पेस्टिसाइड्स बेचने वाले तो मालामाल और बीमार यानि “मतदाता और करदाता” कंगाल होते जायेंगे क्योंकि हर मतदाता करदाता है और हर करदाता मतदाता भी है और दोनों ही “दान” करते हैं और दान “सुपात्र” को ही करने का शास्त्रसँगत धर्म है /सुपात्र के लिए एक प्रारंभिक परीक्षा अनिवार्य की जानी चाहिये /
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