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“तहजीब गंगा यमुना की”

bharat
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“तहजीब गंगा यमुना की”
इस्लाम उदय के पहले से ही भारत में यमुना नदी बहती थी और गँगा का तो पौराणिक ऐतिहासिक महत्व जगतप्रसिद्द है /सरस्वती नदी के बारे में भी यही उल्लेख मिलता है कि महाभारत युद्ध से ठीक एक क्षण पहले ही सरस्वती नदी अंतर्धान हो गयीं थीं /जगतजननी माँ पार्वती की बहिन माँ गँगा जहाँ भगवान् विष्णु के चरणों से निकलकर भगवान् शंकर के जटाओं में सुशोभित हुईं तो वहीँ यमुना स्वयं भगवान कृष्ण की पत्नी और यमराज की बहिन भी हैं /भगवान् कृष्ण राजनीति के सर्वश्रेष्ठ आचार्य हैं और दूसरे स्थान पर दुर्योधन के मामा शकुनि और तीसरे पायदान पर आचार्य विष्णुगुप्त यानि चाणक्य हैं /आधुनिक राजनेताओं, समाचार निर्माताओं और समाजसेवियों को भारत में गंगा यमुना तहजीब का बखान करते देखा जाता है जहाँ हिन्दू संस्कृति को गंगा और मुस्लिम संस्कृति को यमुना से सुशोभित किया जाता है और भारत को गंगा यमुना तहजीब का संगम बताया जाता है और उधर सुप्रीम कोर्ट कहता है कि नदियों पर किसी राज्य का एकाधिकार नहीं तो फिर नदियों पर हिंदू मुस्लिम संस्कृति का कब्ज़ा क्यों ?खैर इलाहाबाद में दोनों नदियों का संगम हुआ और यमुना गंगा में विलीन हो गयीं लेकिन मुस्लिम संस्कृति तो इलाहाबाद से आगे निकलकर दक्षिण पश्चिम पूरब तीनों दिशाओं में तेजी से फैली और गंगा ने पूर्व दिशा का रुख कर लिया तो भारत को गंगा यमुना तहजीब तक ही सीमित क्यों रखा गया जबकि गोदावरी नर्मदा ताप्ती आदि भी तो पवित्र नदियां हैं और मुस्लिम आबादी इन क्षेत्रों में उतर भारत से अधिक है / आजकल भारत बहुत विचित्र लेकिन रोचक गंभीर संक्रमण काल से गुजर रहा है जहाँ झोलाछाप डाक्टर नीट परीक्षार्थियों को यह उपदेश देता है कि सफल डाक्टर कैसे बनें ? हाँ ! तो बात कुछ ऐसी रही कि भारत के मूल धर्म, संस्कृति और अस्मिता की रक्षा करने वालों ने ही “गंगा” को भ्रष्टाचार का पर्याय बनाकर देश के सामने प्रस्तुत किया और देश की राजधानी में स्थित एक विशेष निवास स्थान को भ्रष्टाचार की “गंगोत्री” तक बताया गया और यह कहते हुए उनको यह आभास और पश्चाताप नहीं हुआ कि “गँदगी” की तुलना “पवित्रता” से कर रहे हैं /जो माँ गंगा भगवान् विष्णु के चरणों से निकलीं और भगवान् शंकर की जटाओं में स्थित हुईं तो उनकी तुलना भ्रष्टाचार से करना ही क्या सम्भता संस्कृति और राष्ट्रप्रेम है ?अगर वह विशिष्ट स्थान भ्रष्टाचार की गंगोत्री है तो फिर यमनोत्री पर ख़ामोशी क्यों ?यमुना भी उदय हुईं है और सभ्यता गंगा यमुना से सुशोभित है तो बीच मंझधार में अकेली गंगा ही क्यों क्योंकि यमुना भी जब गंगा में विलय हो गईं तो स्वीकार करने में हिचक क्यों कि गंगा में विलय हो गये ?उनका भ्रष्टाचार अगर गंगा था और अपना भ्रष्टाचार को यमुना कहने से डर क्यों क्योंकि तहजीब ही जब “गंगा यमुना” की ठहरी /बहुचर्चित पीएनबी स्कैम इसलिए सुर्ख़ियों में आया क्योंकि पीएनबी ने स्वयं ही सीबीआई को एफआईआर की नाकि सरकारी संस्थाओं ने ?इसलिए यह घोटाला जनता के सामने पीएनबी ने लाया और कानपुर में जीएसटी कमिश्नर संसारचंद के संसार का भी भंडाफोड़ एक व्यापारी ने ही किया और केवल कानपुर ही एक अकेला जीएसटी कमिशनरी नहीं है बल्कि और भी बहुत से संसारचंद अपना संसार बढ़ा रहे हैं / मेडिकल कॉलिजों ,डिग्री कॉलिज, इंजीनियरिंग मैनेजमेंट कॉलिज ,माइनोरिटी शिक्षा संस्थाओं की मान्यताएं तो बहुत दूर बल्कि किसी भी दुकान ,अस्तपताल का ही लाइसेंस मुफ्त में नहीं बनता है यहाँ तक कि मकान बनवाने तक का नक्शा पास कराने के लिए सरकारी शुल्क के अलावा राजनीतिक “गंगा यमुना तहजीब” को भी प्रसाद चढ़ाना अनिवार्य है / भारतीय जनमानस को तो राजनीतिक “गंगा” और “यमुना” में भेद नहीं दिखता क्योंकि इनके घाट पर बैठे पुरोहित यजमानों की खाल उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ते /जिन्दा रहना है तो पानी इन्ही गंगा यमुना की कृपा से मिलेगा जो बारी बारी से पानी तो देंगी लेकिन आमाशय जिग्नाशय पित्ताशय को स्वस्थ भी रहने नहीं देंगी यानि जनता को भगवान् शंकर के तीसरे नेत्र खुलने की प्रार्थना करनी होगी /

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