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“झोला ” पाप या अभिशाप
यूपी में एक “झोला” छाप डाक्टर की कृपा ऐसी बरसी कि छियत्तर साधारण रोगी जानलेवा बीमारी एड्स के शिकंजे में फंस गये /शासन ने उस झोलाछाप को गिरफ्तार तो कर लिया लेकिन पीड़ितों की जिंदगी पर तो ग्रहण लग ही गया ?यह प्रदेश एवं देश के तंत्र पर जोरदार तमाचा है कि अमान्य अपंजीकृत चिकित्सक भ्रष्ट शासन और सरकारी कुप्रबंधन की कृपा से जनता के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं और अगर थोड़ी से भी नैतिकता सरकारों में बची है तो उस क्षेत्र के चिकित्सा विभाग ,जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान ही नहीं बल्कि विधायक सांसद की भी बर्खास्तगी तुरंत हो क्योंकि ये सभी वेतनभोगी लाभार्थी हैं जिनका वेतन और भत्ता खर्च भारतीय करदाता भुगतता है /मूल प्रश्न बहुत सारगर्भीत,गंभीर एवं विचारणीय है कि क्या केवल चिकित्सक ही झोलाछाप हैं ?और भारत जिसमे युवाओं की प्रतिशत पैंसठ है क्या वे “झोला” शब्द से परिचित हैं क्योंकि अब तो “झोला” शायद ही कहीं देखने को मिलें ?पहले समय में नेताओं और पत्रकारों की पहचान में भी झोला प्रमुख था और प्राचीन ब्लेक व्हाइट चित्रों में नेताओं और पत्रकारों के गले में “झोला” लटका देखा जा सकता है /अगर झोलाछाप एक अभिशाप है तो यह पाप केवल अयोग्य अपात्र अमान्यडिग्रीधारी अपंजीकृत चिकित्सकों के लिये ही उपमा क्यों?राज्य एवं केंद्र सरकारों के मंत्रिमंडल में बहुत से क्या बल्कि लगभग सारे ही माननीय ऐसे हैं जिनको अपने मंत्रालय संबंधित विषय की मूलभूत योग्यता तो दूर बल्कि जानकारी तक नहीं लेकिन वे प्रदेश एवं देश के विकास सुशासन और कानून बनाने तक की जिम्मेदारी सँभालते हैं और उनकी बनायीं नीतियों से देश का बंटाधार होता आया और होता रहेगा तो समूचे देश को असाध्य रोगी बनाने वाले इन माननीयों को “झोलाछाप” कहने में संकोच क्यों ?अध्यापकों की भारी कमी से जूझते सरकारी शिक्षा संस्थानों में बहुत से अध्यापक उन विषयों को पढ़ाते देखे जाते हैं जिन विषयों को उन्होंने स्वयं कभी नहीं पढ़ा तो ऐसे अध्यापक क्या झोलाछाप नहीं ?समय की मांग है कि सरकार “झोला” पर श्वेतपत्र लाये या फिर “झोला” को प्रतिबंधित करे ताकि झोला के झोल में फँसी जनता इससे बाहर निकल सके ?
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