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एक घर “अपनों” का या “”सपनों” का ?
हरियाणा के ऐतिहासिक कुरुक्षेत्र में भारत अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन करने जा रहा है जिसका विधिवत उद्घाटन भारत के महामहिम राष्ट्रपति महोदय करेंगे लेकिन भारत की विडंबना और पीड़ा भी बड़ी विचित्र है कि जिस गीता महापुराण का अंतर्राष्टीय महोत्सव आयोजित होने जा रहा है और मानवीय धर्म की प्रामाणिक व्याख्या करने वाले इस उपनिषद को महामहिम राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित भी नहीं कर सकते जबकि भारत के सारे न्यायालयों में इसी पवित्र ग्रंथ पर हाथ रखकर सत्य बोलने का पाखंड रचते लोग भगवान को साक्षी बनाकर दिन दहाड़े असत्य बोलते हैं /भौतिकतावाद में घिरा भारत “वासुदेव कुटुंबकम” की परिभाषा भूल चुका है क्योंकि क्षेत्र संप्रदाय जाति धर्म समुदाय इतने प्रभावी हो चुके हैं कि एक ही घर में रहने वाले सारे परिवारजन ही किसी एक विषय पर ही एकमत सहमत होना तो दूर बल्कि एक दूसरे को हर समय नीचा दिखाने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहते /घर ईंट सीमेंट लोहा मिटटी का ढाँचा नहीं बल्कि एक संस्कार है और यही संस्कार देश की एकता अखंडता की सबसे छोटी इकाई है और घर से ही कुटुंब गोत्र तक पहुँचा जाता है /घर से ही मोहल्ला क्षेत्र गाँव क़स्बा शहर जिला कमिशनरी प्रदेश और अंत में देश का निर्माण होता है लेकिन जब घर में ही ऐका न हो तो भला मोहल्ला शहर प्रदेश देश में एकता अखंडता का दर्शन कैसे होगा /एक नारी ही घर की बुनियाद होती है और नारी से संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी स्थांतरित होते हैं और देवादिदेव महादेव तक भी महाशक्ति महाकाली को संस्कार की जननी कहते हैं और ये महादेव केवल देवता के ही आराध्य नहीं बल्कि असुरों के भी आराध्य हैं और पुरातन विभाग भी भगवान् शंकर के अस्तित्व को इतिहास से प्रमाणित करता है यानि महादेव काल्पनिक वस्तु नहीं और यहाँ तक कि निराकार निर्गुण निर्विशेष ब्रह्म उपासना का प्रतीक पवित्र काबा तक भी शिवलिंग को स्वीकारता है /महाशक्ति महाकाली जो भूत वर्तमान भविष्य ही नहीं बल्कि मन बुद्धि अहंकार प्रकृति महान से भी अतीत और काल से भी परे हैं और इन्ही महाशक्ति की कृपा से संसार की उत्पत्ति हुई है और गर्भधारण के साथ साथ सन्तानोत्त्पत्ति का श्रेय भी स्त्रीलिंग को ही प्रदत्त है और यह स्त्रीलिंग केवल मनुष्यों को ही नहीं बल्कि प्रकृति की हर जीवित शक्ति को प्रदत्त है यानि प्रत्येक जीव नर और मादा में विभाजित है इसलिए प्रकृति को भी स्त्रीलिंग का ही श्रेय प्रदत्त है तथा प्रकृति पुरुष का समायोजन ही अर्धनारीश्वर के साथ शिवलिंग का प्रतीक है /कहने का तात्पर्य यही है कि मूल में सभी जीव भगवान् शंकर और माता पार्वती की संतान हैं और शंकर परिवार “वासुदेव कुटंबकम” को चरितार्थ करता है जहाँ भगवान् शंकर की सवारी शाकाहारी पशु नंदी जो क्रूर हिंसक सिंह को अतिप्रिय होने के बाबजूद माता पार्वती माँ भगवती की सवारी है और प्रथम देव का अधिकार रखने वाले भगवान् गणेश की सवारी मूषक है जो सर्प को अतिप्रिय है लेकिन ये सर्प भगवान् शंकर के आभूषण हैं और सर्प मोर को अतिप्रिय लेकिन यही मोर भगवान शंकर के पुत्र और देव सेनापति कार्तिकेय की सवारी हैं और मोर पंख भगवान् कृष्ण अपने सिर पर विराजते हैं और शेषनाग भगवान् नारायण का आसन है और संसार के पालन भरण हेतु भोजन वस्त्र आभूषण वनस्पति आदि को सुलभ उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी इन्ही माँ लक्ष्मी की है जो भगवान् नारायण की शक्ति और अर्धांग्नी भी हैं /इतना विचित्र अद्भुद अद्वितीय संगम लेकिन सत्य को प्रतिपादित करता यह परिवार या कुटुंब भारत की आध्यात्मिक धरोहर ही नहीं बल्कि प्रेरणा भी है और मानवीय धर्म और ईश्वरीय धर्म की उचित तर्कसंगत व्यख्या करने वाला व्याख्यान ही पवित्र गीता उपनिषद है जिसमे कर्म ज्ञान और भक्ति इन तीनों का महत्त्व और साधन के साथ मनुष्य के लक्ष्य साध्य को भी परिभाषित किया गया है और ईश्वर की इतनी बड़ी महान कृपा को भारतीय लोकतंत्र और राजतंत्र और न्यायतंत्र अंगीकार करना तो दूर बल्कि स्वीकारने तक को धर्मनिरपेक्षता पर आघात समझता है और बुद्धजीवी इसे अभिव्यक्ति पर पहरा बताकर लोगों में वैमनस्य द्वेष ईर्ष्या हिंसा फैलाने का षड्यंत्र रचते हैं /महामहिम राष्ट्रपति स्वयं सगुण सविशेष साकार ब्रह्म को स्वीकारते हैं और इसी गीता महापुराण में भगवान् स्वयं सगुण साकार समग्र स्वरुप के ध्यान मनन चिंतन करने को ही ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल और सुलभ मार्ग बताते हैं और जब इसी महान ग्रंथ का प्रागट्य महोत्सव मनाया जा रहा है तो महामहिम राष्ट्रपति को इसे राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करके अपना मूल दायित्व का निर्वाहन करना उनके राजनीतिक ,मानवीय,और आध्यात्मिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगा /”वासुदेव कुटंबकम” “”सपनों” के नहीं बल्कि “अपनों” के घर को परिभाषित करता है /महामानव महात्मा महान पीएम सन 2022 में सबको अपना “घर” देने का वादा करते हैं लेकिन यह घर केवल निर्जीव वस्तुओं ईंट सीमेंट गारा लोहे का मिश्रण भर होगा जिसमे सजीव वस्तु यानि मनुष्य बाद में प्रवेश करेगा लेकिन यदि भारत की सभी संतानें संप्रदाय क्षेत्र समुदाय जाति के सीमित दायरे से बाहर निकलकर केवल मानवीय धर्म और स्वयं भगवान् के श्रीमुख से प्रगट हुए पवित्र उपदेश भगवद गीता को जीवन में अंगीकार स्वीकार करलें तो भारत को “सपनों” का नहीं बल्कि “अपनों” का घर बनते देर नहीं लगेगी / सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय” यह किसी राजनीतिक पार्टी या नेता या बाबा का उपदेश अथवा नारा नहीं बल्कि वेदमंत्र है और इस “आशा” या “उद्देश्य ” या “लक्ष्य ” को जीवित रखकर इसे अपने आचरण व्यवहार विचार में उतारना ही वास्तविक धर्मनिरपेक्षता है और देश से भ्रष्टाचार व्यभिचार दुराचार पापाचार अत्याचार अनाकार समाप्त करने का एकमात्र साधन अथवा विकल्प अथवा मार्ग केवल और केवल भगवद गीता के सात सौ श्लोकों के अध्यन चिंतन मनन स्मरण के बाद दैनिक व्यवहार में लाना ही है और यदि महामहिम राष्ट्रपति तथा महात्मा पीएम इस पवित्र को “राष्ट्रीय ग्रंथ” घोषित करते हैं तो इनका राजनीतिक धर्म का ठीक ठीक पालन हुआ माना जायेगा और इस महान उपदेश के श्लोकों का संसद और हर विधानसभा में दैनिक पाठ अनिवार्य कर देते हैं तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारा भारत “सपनों”” का नहीं बल्कि “अपनों” का घर के संबोधन से ही संसार में पूजा जायेगा जिसके लिये किसी मूडी और विश्व बैंक की रैंकिंग की जरुरत ही नहीं पड़ेगी बल्कि संसार के अन्य देश भारत से अपनी रैंकिंग सत्यापित करायेंगे !!! ईश्वर से प्रार्थना है कि मेरी आशा अभिलाषा शीघ्र ही परिणामजनक सिद्ध हो !!!!
श्रीमती रचना रस्तोगी
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