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“चंदेमातरम” स्वीकार है
बनारस देश की अनादि काल से आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक राजधानी रहा है /हिंदु धार्मिक कुरीतियों रूढ़िवादियों के विरुद्ध सामाजिक आंदोलन चलाने वाला वास्तविक महापुरुष स्वामी दयानन्द जी को सरस्वती उपाधि भी इसी बनारस ने ही प्रदान की थी हालांकि देश के स्वाधीनता संग्राम के लिए उनका चलाया हुआ अहिंसक आंदोलन महात्मा गाँधी की छांव में राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो गया था और इसका प्रमाण हरिद्वार में कुरुकुल कांगड़ी में स्वामी श्रद्धानन्द के विश्विद्यालय में मौजूद है /संगीत ज्योतिष और संस्कृत का अनूठा संगम केवल बनारस में ही देखने को मिलता है /अमिताभ बच्चन और देवानंद ने बनारस के पान और बनारस के ठग को अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता भी प्रदान की और शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने बनारस का पान का नाम न सुना होगा और ठगों की महिमा तो मीडिया आये दिन सुनाता ही रहता है /नेता पक्ष और विपक्ष के भाषणों में जनता को ठगने लूटने जैसे अलंकृत शब्द बहुत लोकप्रिय हैं और हिंदू सनातनी रीतियों से शवों के अंतिम संस्कार करने वाले ब्राह्मणों के अत्याचार पर पीएम सहित सभी नेताओं की वाणी मौन है /पान की पीकों से बनारस की सडकों गलियों दीवारों शोभा देखते ही बनती है क्योंकि आधी दीवारों पर तो लाल रंग ही चढ़ा रहता है /पान और ठगों की पहचान बने बनारस से ही चुने सांसद पीएम भी हैं जिन्होंने पान की पीक मारने वालों से वंदेमातरम बोलने का अधिकार छीन लिया है /यानि बनारसवासियों को अब वंदेमातरम का अधिकार नहीं रहेगा लेकिन उनसे राजनीतिक दान अर्थात चंदा लेने से परहेज नहीं यानि चन्देमातरं स्वीकार है !!
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