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तीखी लेकिन मीठी मिर्च
भारत में अनियंत्रित विस्फोटक जनसँख्या और सुरसा निशाचरी जैसी बेरोजगरी ये दो जटिल गंभीर बीमारियाँ जिनको नेताओं ने ही असाध्य बनाया हैं लेकिन विडंबना यही कि इनसे निबटने के लिये भी अनुभवी व्यवहारिक योग्य और दक्ष डॉक्टर यानि नेतृत्व की आवश्यकता है /रावण बल बुद्धि शौर्य पांडित्य में अग्रणी था परंतु अहंकार उसको ले डूबा लेकिन फिर भी वह योग्य था और रामचरितमानस सुंदरकांड के प्रारंभ में ही हनुमानजी ने स्वयं रावण की लंका की शोभा सुन्दरता और रमणीयता को अप्रतीम बताया है /चित्रपट के श्रेष्ठ अदाकार भी सत्ता नेतृत्व की भाषण कलाकारी के आगे नगण्य हैं /जनसँख्या को नियंत्रित करने के बजाय छः हजार रूपया संतान उत्पादन प्रोत्साहन राशि गर्भवती महिला को मिले और रोजगार मांगने वाले दलाल कहे जायें, जीएसटी नोटबंदी से जीडीपी गिरे या उठे या सरकार की तिजोरी भरे या आयकरदाता बढ़ें घटें लेकिन जिस एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों के हितों की दुहाई दी जाती है,उसी आम जनता को तो सारी ही वस्तुएं अब महंगे दामों पर ही मिल रहीं हैं/ राजनीतिक शुचिता की ललकार वहीँ दम तोड़ देती है जब व्यभिचारी अत्याचारी बलात्कारी अंगूठाछाप पाखंडियों का आशीर्वाद सत्ता पाने की सीढ़ी बन जाता है /कुछ दिनों बाद ही नवरात्र पर्व शुरू होंगे और सोशल मीडिया से लेकर न्यूज मीडिया तक में नेताओं अभिनेताओं के व्रतोपवास की ख़बरें सुर्खियां होंगी लेकिन उत्तरपूर्व भारत में आज भी बहुत से गरीब तालाबों पर जमी काई को भूनकर खाते हैं,वृक्षों की छाल खाते हैं ,कीड़े मकोड़े भूनकर खाते हैं लेकिन आठ लाख वार्षिक आय वाले ओबीसी को सरकार नौकरी में आरक्षण देना सामाजिक न्याय है /सामाजिक संगठनों द्वारा संचालित और गैर सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में सिफारिश से रखे सामान्य श्रेणी के पोस्टग्रेजुएट बीएड मास्टर को अधिकतम पांच छः हजार रूपया मासिक वेतन लेकिन काम पूरे दिन और सरकारी प्राइमरी स्कूलों में ग्रेजुएट बीएड टीचर को न्यूनतम चालीस हजार रूपया मासिक वेतन लेकिन काम कुछ नहीं ?लोग भूल जाते हैं कि यूपी के निकटवर्ती प्रदेश में पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री अनपढ़ थीं और कॉन्वोकेशन में डी.लिट उपाधि लेने वाले शोधार्थी ने उपाधि लेने से ही मना कर दिया था और कुछ वर्ष पहले आईआईटी संस्थान में भी मानवसंसाधन मंत्री से उपाधि लेने से इंकार हुआ था,यह विरोध राजनीतिक नहीं बल्कि शिक्षा विद्या का अपमान था /अभी कुछ ही दिन पहले ईश्वरचंद विद्यासगर की पुण्यतिथि पर बहुत नेताओं ने ट्वीट किये तो क्या उनसे प्रेरणा लेकर नेतागण अब वेतन लेना छोड़ देंगे क्योंकि ईश्वरचंद विद्यासागर तो निशुल्क सेवा करते थे ? नेतागण जनता को कभी जागरूक होने नहीं देंगे क्योंकि अगर कोई आवाज उठी भी तो समर्थक सेवा कर देंगे /इंदिराजी को कोसना आसान है लेकिन अगर इंदिराजी ने नसबंदी अभियान न चलाया होता तो आज भारत की जनसँख्या दोगुनी होती ?हर पहलु को राजनीतिक हित से नहीं बल्कि देशहित से भी देखना जरुरी है और यही वास्तविक राष्ट्रप्रेम है / देश का एक नागरिक भूखा मरे लेकिन उसकी भूख को राजनीतिक व्यंजन बनाकर नेता संसद की केंटीन में मुफ्त के से दाम पर आनंदभोज करे,ई रिक्शा वालों पर तरस आता है तो उनका आरटीओ रजिस्ट्रेशन मुफ्त कर दिया जाय ,सब्जियों की भी एमआरपी फिक्स कर दी जाय ,गरीबों के स्वास्थ्य की बहुत चिंता है तो संसद में बैठे डाक्टर अपने चुनाव क्षेत्र में जाकर स्वयं मुफ्त चिकित्सा सेवा दें ?लेकिन उपदेश तुम्हारे और फर्ज हमारे !!!
रचना रस्तोगी
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