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गीता का एक सांकेतिक संदेश

bharat
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गीता का एक सांकेतिक संदेश
व्यक्ति के विचार ही उसके व्यक्तित्व का परिचायक होते हैं अब विचार अच्छे हों या बुरे, इसका निर्णय परिस्थितियों और विषय पृष्ठभूमि पर आधारित होता है और प्रभावशाली व्यक्ति के विचारों पर ही समाज अपनी प्रतिक्रिया ,उत्तेजना ,आलोचना और विवेचना व्यक्त करता है /कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है लेकिन मछली भी बिना जल के कहाँ जीवित रह सकती है ?ठीक इसी प्रकार प्रभावशाली व्यक्ति का अस्तित्व भी समाज से पृथक नही परंतु उसके विचारों से उत्पन्न सकारात्मक और नकारात्मक तरंगे समाज को प्रभावित अवश्य करती हैं /ईश्वर की कुछ ऐसी व्यवस्था है कि समाज में प्रचलित प्रत्येक धर्म का अपना एक धर्मशास्त्र है जो समाज में अनुशासन बनाये रखता है लेकिन जब एक धर्मावलंबी किसी अन्य धर्म में हस्तक्षेप करता है तो समाज में विक्षोभ पैदा हो जाता है / हिन्दू धर्म की मान्यता है कि व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही उसका लिंग कुल आयु धर्म धनसंपत्ति यश अपयश पद प्रतिष्ठा रिश्तेदारों मित्रों शत्रुओं और व्यवसाय का निर्णय हो जाता है और समयानुसार उसको भुगतना पड़ता है और कोई किसी का अच्छा या बुरा नही कर सकता लेकिन फिर भी प्रभावशाली लोग दूसरों का भविष्य तय करने में लगे रहते हैं / भगवान् राम ने बालि का वध छिपकर किया और विभीषण के रहस्योद्घाटन उपरांत ही रावण का वध संभव हुआ / जिस धर्मयुद्ध में भगवदगीता का प्रागट्य हुआ उसी धर्मयुद्ध में भगवान् को स्वयं छल कपट झूठ का सहारा लेना पड़ा और शस्त्रगुरु द्रोणाचार्य को परास्त करने के लिये धर्मराज युधिष्ठिर तक को झूठ बोलने के लिए विवश किया गया था और भगवद्गीता के बाद ही कलियुग का प्रारंभ हुआ परंतु गीता के बावनसौ वर्ष बीत जाने के बाद भी पाप का अंत नही हुआ /जिन प्रभाशाली व्यक्तियों को भगवान् ने समाज में शांति सद्भाव और समभाव बनाये रखने की जिम्मेदारी दी वही लोग समाज में धर्म, जाति और अर्थ पर समाज को छिन्न भिन्न करना का प्रयास कर रहे हैं और जिनको धर्म शास्त्र का सन्देश देना चाहिए था वे देशप्रेम की आड़ में महंगे दामों पर बिस्कुट मक्खन आटा दाल मसाले बेच रहे हैं / होमियोपेथी पद्धति में मान्यता है कि चिकित्सक केवल उपचार करता है लेकिन ठीक केवल परमात्मा करता है ” I TREAT HE CURES ” / एलोपैथी पद्धति भी ईश्वरीय व्यवस्था को मानती है और आयुर्वेद तो शुद्धतः वेदपारायण चिकित्सा पद्धति है परंतु इन तीनों पद्धतियों के विशेषज्ञ स्वयं को भगवान् घोषित नही करते जबकि रोगी उनको जरूर ईश्वर तुल्य ही मानता है / जैन धर्म और हिन्दू धर्म में तो खाद्य वस्तुओं को ग्रहण करने तक का समय और विधि विधान निर्धारित है /उदाहरण के तौर पर एकादशी को हिन्दू चावल नही खाते और जैनी शाम होने के बाद भोजन ग्रहण नही करते लेकिन ये कभी दूसरों को खाने पीने से मना नही करते /यह तो प्रकृति है जिस पर राजनेताओं का जोर नही चलता वर्ना राष्ट्रनीति के नाम पर राजनेता सूर्योदय ,सूर्यास्त और चंद्रोदय तक का समय निर्धारित कर देते /इसलिए कोई किसी का भाग्य विधाता नही बल्कि मनुष्य के स्वयं के किये कर्म ही उसकी नियति तय करते हैं यही गीता का एक सांकेतिक संदेश भी है /
रचना रस्तोगी

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