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ई भाषणों पर भी विचार हो

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ई भाषणों पर भी विचार हो
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कुछ सड़क छाप कुत्ते कड़ाके की ठण्ड में ठिठुर कर मर जाते है तो कुछ गाड़ियों से कुचलकर लेकिन कुछ कुत्ते इतने खुशनसीब होते हैं कि गर्मियों में वातानुकूलित कमरों में रहते हैं और गाड़ियों में बैठकर सैर सपाटा भी करते हैं /इसी भारत में कुछ आदमियों के पास खाने की एक रोटी भी नही तो कुछ कुत्ते महंगे बिस्कुट भी खाते हैं /नियति भारत की यही है कि सत्तर साल का रोना रोने के तीस महीने बाद भी स्थिति जस की तस/यही भारत की सबसे बड़ी त्रासदी है कि गरीबी का भयंकर मजाक उड़ाकर छोटे लालच देकर बेरोजागर नवयुवकों को अमीरों के प्रति भडकाया जाता है और भीड़ का महानायक वहां बैठे बेरोजगारों भूखों और लाचारों को अपना हाईकमाण्ड कहता है लेकिन संसद में पहुँचते ही वह 125 करोड़ लोगों का हाई कमाण्ड बन जाता है / एक ओर महानायक कहता है कि भारत का एक भी व्यक्ति असामयिक मृत्यु मरता है तो उसको दुःख होता है लेकिन 105 गरीब भारतीय इसी महानायक की जिद के कारण बैंकों के बाहर खड़े खड़े मर गये लेकिन कोई संवेदना नही जबकि इन्ही गरीबों की वोट से बना एक नेता मर जाय तो राष्ट्रीय शोक बनता है/ रेल दुर्घटना में 150 लोग मर जाएँ तो मुआवजे में पुरानी करेंसी देकर पिंड छुड़ाया जाता है और ट्वीट से शोकसंदेश भी /महानायक गंगा के बुलावे पर बनारस गये लेकिन तीस महीने बाद गंगा आज भी गन्दी और लेट लतीफी का आलम यह कि महानायक के शासन में कोई ट्रेन राईट टाइम नही और अर्थव्यस्था चौपट हो चली /प्रत्येक दिन एक नये विवाद का जन्म और लोकतंत्र की रात लंबी और काली होती जा रही है और सूर्योदय कब होगा पता नही ?अचम्भा देखिये कि इसी वर्ष के 30 सितंबर को कुल डेढ़ लाख सालाना का आयकर रिटर्न दाखिल करने वाला 13860 करोड़ रूपया की रकम घोषित करता है और मीडिया के सामने बखूबी कबूलता भी है कि रकम उसकी नही बल्कि गरीबों की वोटों से बने कुछ नायकों और नायकों के बफादार कुछ अधिकारियों की है लेकिन जाँच एजेंसियों को उन नायकों के नाम पता नही ?अचानक कुछ आदमियों के खातों में करोड़ों रुपये पहुँच जाते हैं लेकिन शोर मचते ही बैंकों की गलती प्रगट होती है लेकिन अगले दिन खातेदार गायब हो जाता है /महानायक भीड़ में कहते हैं कि उनके दिमाग में बहुत से नए नए विचार आते हैं और तुरंत निर्णय लेते हैं और महानायक के चेले कहते हैं कि पीछे हटना महानायक के स्वाभाव में नही क्योंकि महानायक गरीबी में पले बड़े हैं और महानायक किसी की सुनते भी नही लेकिन महानायक तानशाह भी नही /महानायक कहते हैं कि सत्तर सालों के पाप धोने हैं जिनमे ढाई साल उनके शामिल हैं यह नही ,इसमें संशय है लेकिन महानायक कहते हैं कि दूध दाल रोटी ब्रेड दवाई और रोजमर्रा के सामान की खरीद ई पैमेंट से करें तो भाई !!! जब सत्तर सालों के पाप ही धोने हैं तो माननीयों का चयन भी मोबाईल आधार कार्ड वोटिंग से क्यों नही ?क्या चुनाव आयोग को माननीय मोबाइल आधार कार्ड वोटिंग के लिए बाध्य नही कर सकते इससे चुनावों में खर्च होने वाले अरबों रुपियों की बचत भी होगी और चुनाव आयोग को भी अब नायकों की रैलियों पर प्रतिबन्ध लगाकर ई भाषणों को ही मान्य करना होगा और अगर कोई नेता ई भाषण की जगह रैलियों द्वारा संबोधित करता पकड़ा जाय तो इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ मानकर उनको सदा के लिए माननीय बनने से वंचित किया जाय तो वाकई में सत्तर सालों के कुछ तो पाप धुलेंगे ?
रचना रस्तोगी

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