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शोषित,पीड़ित,वंचित और दलित

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शोषित,पीड़ित,वंचित और दलित
भारत में राजनीति दो धुरों में बंटी हुई है एक वर्ग अपने को धर्मनिरपेक्ष यानि सेकुलर कहता है तो दूसरा अपने को राष्ट्रवादी बताता है और 130 करोड़ जनसँख्या इन दोनों वर्गों के नित्य नये स्वांग देखती है और विकासवाद जातिवाद परिवारवाद संप्रदायवाद पूंजीवाद क्षेत्रवाद ये ऐसे अलंकार हैं जिनको सुनकर जनता थक चुकी है / राष्ट्रवादी राजनेताओं ने शोषित पीड़ित वंचित दलित ये चार शब्द ऐसे पकड़ लिये हैं कि इनके बगैर इनका कोई भी भाषण या सम्बोधन पूरा ही नहीं होता ,भले ही वहाँ इन चार शब्दों की कोई प्रासंगिकता या सन्दर्भ न हो लेकिन इन चार शब्दों की पुनरावृत्ति अनिवार्य है / सेकुलर नेताओं ने अल्पसंख्यक यानि माइनोरिटी शब्द को केवल मुसलमानों तक सीमित करके इस शब्द का इतना दोहन किया है कि सेकुलर राजनीति में दलित और मुसलमान ही केवल मुख्य बिंदु बनकर रह गये हैं / पता नहीं नेताओं को कहाँ दलितों और मुसलमानों का शोषण दिखता है जबकि आर्थिक सामाजिक मानसिक और मनोवैज्ञानिक शोषण तो भारत के सामान्य वर्ग का हो रहा है जिसके आंसू पौंछने वाला कोई नही है ?प्राइवेट मिलों,छोटे कारखानों ,छोटी फैक्टरियों, ईंट भट्टों ,बड़ी बड़ी नामी गिरामी मिठाई नमकीन की दुकानों तक में लेबर एक साल का पूरा पैसा एडवांस में लेकर काम करती है और लेबर रेट भी अपने ही तय किये होते हैं / सामान्य मजदूरी उदहारण के तौर पर राज मिस्त्री ,प्लम्बर ,बिजली मिस्त्री ,कारपेंटर ,पेंटर , फ्रिज टीवी मेकेनिक ,स्कूटर कार मेकेनिक या डेली वेजिस पर भी काम कर रहे मजदूर अपने ही तय किये रेट पर काम करते हैं ,घर खाली बैठना मंजूर है लेकिन कम दाम पर नहीं ?बिजली इलेक्ट्रिकल मेकेनिक ,इलेक्ट्रॉनिक मेकेनिक ,प्लम्बर ,या सेनेटरी मेकेनिक घर या दुकान पर आने की विजिट फीस पहले वसूलता है और काम के पैसे अलग से लेता है और पार्ट बदलने की भी मनचाही कीमत वसूलता है जिसका न कोई बिल ,न कोई सेल्स टेक्स और न कोई सर्विस टेक्स और न कोई वैट ?क्योंकि बेचारा दलित शोषित पीड़ित वंचित जो ठहरा ?जबकि एक एमबीबीएस एमडी बीएएमएस बीएचएमएस डाक्टर घर पर मरीज देखकर दवाएं लिख देता है और तीमारदार डॉक्टर से फीस की सौदेबाजी भी करते हैं जबकि मेकेनिक से सौदेबाजी करने की इनमे हिम्मत नहीं और मेकेनिक भी कोई एक बार में नही आता है बहुत मनोब्बत करके तीन चार घंटे बाद का समय निकाल पाता है और इस मेकेनिक से कोई बिल नहीं मांग सकता है और न ही कोई रिम्बर्समेंट होता है क्योंकि आमदनी टेक्स फ्री जो है और मेकेनिक शोषित पीड़ित वंचित दलित जो ठहरा और डाक्टर बेचारा फीस की रसीद भी देता है और दवाइयों के बिल का रिम्बर्समेंट भी होता है / पुताई करने वाला मजदूर भले ही सुबह नौ बजे से सायं पाँच बजे तक के लिए तय हो लेकिन कूची दस बजे ही पकड़ेगा और चार बजे धोना शुरू कर देगा उसमे भी बीड़ी पीने का कोई समय नहीं और लंच एवं रेस्ट का एक घंटा फिक्स रहता है और चाय का खर्च मालिक भरेगा ? और अगर मालिक ने कुछ कह दिया तो थाने में मालिक द्वारा शोषण की शिकायत बोनस में यानि थानेदार भी अब हजारों वसूलेगा ?तो शोषित कौन है ?इसलिए जनता को अब सुप्रीम कोर्ट से तय करवाना ही पड़ेगा कि शोषित पीड़ित वंचित और दलित शब्दों की अलग अलग विस्तार पूर्वक व्याख्या करे और सारे मानक तय करके अलग से गजट नोटिफिकेशन जारी किया जाय क्योंकि जिन दलितों के नाम पर राजनीति हो रही है उसमे अधिकांश ऐसे लोग हैं जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं क्योंकि घर का प्रत्येक सदस्य कमा रहा है /मनरेगा में कौन मजदूर काम करना चाहता है क्योंकि बाजार में चार सौ रूपया दैनिक मजदूरी मिलने पर भी मजदूरों का भारी टोटा है /इनको काम देने वाले का खून ही पसीना बन जाता है क्योंकि काम करने के पैसे लेने के बाबजूद काम करने को तैयार नही / तिपहिये रिक्शे वाला या ई रिक्शा वाला अपने तय किये रेट पर ही सवारी बैठाता है /यह समझना मुश्किल है कि भारत में आखिरकार शोषण उत्पीड़न हो किसका रहा है ?
रचना रस्तोगी

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