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धर्म ” आतंक और राजनीति” का ?
धर्म तो राजनेताओं का नहीं होता है क्योंकि ये किसी के नहीं हैं ?गिरगिट भी इतनी जल्दी रंग नहीं बदल सकता जितनी जल्दी नेता बदल लेते हैं / आतंकवाद की परिभाषा तय करनी मुश्किल है / चोरी डकैती अपहरण हत्या ब्लैकमेलिंग ठगी सूदखोरी रिश्वतखोरी क्या यह आतंकवाद नहीं है ,इसके हुए शिकार से पूछो तो आतंकवाद की सच्ची परिभाषा तय हो सकेगी / गली मोहल्लों में खुली शारदा चिटफंड जैसी कम्पनियाँ सरकारी और राजनीतिक संरक्षण में जनता को ठग रहीं हैं और जमा राशि वापिस मांगने पर खातेदार को मारापीटा जाता है लेकिन इसी कोई आतंकवाद नहीं कहता ?भारत सरकार और राज्यसरकार का कोई भी सरकारी कार्यालय भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है ,किसी कार्य की सरकारी फीस भले ही कुछ रुपये तय की गई हो लेकिन उससे अधिक रिश्वत देकर ही काम होता है लेकिन सरकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करती है तो इस आतंकवाद को किस रंग और धर्म में ढालेंगे ? चुनाव से पहले किये गए वादों इरादों घोषणाओं और सत्ता मिलने पर की गयी राजनीतिक वादाखिलाफी क्या आतंकवाद नहीं है /मुलायम सिंह ने मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था / मायावती ने सरकारी ठेकेदारी में आरक्षण का वादा किया था और केजरीवाल ने तो वादों की तो एक पूरी लिस्ट जारी की थी और मोदी सरकार ने साठ साल के दुष्परिणामों को मात्र साठ महीनों में ही धोने का वादा किया था लेकिन अब सोशल मीडिया पर इन सभी के समर्थक बीज से फल पैदा होने तक का उदाहरण देकर वादाखिलाफी को भी पूर्ववर्ती सरकारों का षड्यंत्र करार दे रहे हैं /निर्भय काण्ड पर भाजपा और “आप” दोनों ने बहुत छाती पीटी थी लेकिन क्या अब दिल्ली अपराध मुक्त हो गई है ?कांग्रेस का एक नेता जाकिर नाईक को शांतिदूत कहता है लेकिन कांग्रेस उसे पार्टी से निष्कासित नहीं करती है /बसपा त्याग चले कई नेता मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन आयकर और चुनाव आयोग की रहस्मयी चुप्पी क्या इस राजनीतिक आतंकवाद को बढ़ावा नहीं दे रही है ?क्यों नहीं कालेधन पर बनी एसआईटी बसपा के नेताओं के बयानों का संज्ञान ले रही है ? इतना बड़ा आरोप मायावती पर लगा लेकिन बसपा में सतीश मिश्र तो एक वकील भी हैं लेकिन क्यों नहीं मौर्या आदि नेताओं पर छवि बिगाड़ने पर मानहानि का दावा ठोका ? आईएसआईएस या लश्कर या सिमी या मुज्जहिद्दिन को आतंकी संगठन कहा जाता है और उसमे शामिल होने जा रहे युवकों को पकड़ा छेता जाता है ,काश्मीर केरल पश्चिम बंगाल असम त्रिपुरा वेस्टयूपी और तो और जेएनयू तक में कई जगहों पर पापिस्तान के झंडे फहराये जाते हैं लेकिन सजा किसी को नहीं होती है तो इनको संरक्षण देने वाले राजनीतिक दल क्या आतंकवाद के समर्थक नहीं कहे जायेंगे ?मेरठ की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पापिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे लेकिन न यूनिवर्सिटी का कुछ बिगड़ा और न ही उन छात्रों का ही कुछ बिगड़ा ? राजनेताओं की रैलियों में लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठी करने के लिए राजनेताओं के चमचे गरीबों शोषितों वंचितों पीड़ितों भूखों की मजबूरी का खुलकर उपहास उड़ाते हैं क्योंकि बेचारे दो वक्त की रोटी ,एक गमछा और सौ दो सौ रुपियों के लिए पूरे दिन तपती धूप ,मूसलाधार बारिश तो कभी रूहकपाती ठण्ड को सहकर नेताजी के जिंदाबाद के नारे लगाते हैं क्या यह आतंकवाद नहीं है / मुसलमान नेता वैसे तो सांसद या विधायक बनकर भारतमाता की जय नहीं बोलते हैं लेकिन कभी बहुचर्चित हिन्दू राजनेताओं की रैलियों में भूखे प्यासे गरीब बीमार लाचार बेरोजगार शोषित मुसलमनों को दो वक्त की रोटी और सौ दों सौ रुपियों की खातिर भारतमाता की जय बोलते देखेंगे तो लोकतंत्र की परिभाषा भी समझ में आ जाएगी / मेरठ के ईव्ज चौराहे पर ईद की सुबह नौ बजे एक लड़की का पर्स छीनने वाले गुंडों को वहां खड़ी पुलिस और आरएएफ तक भी न पकड़ सकी और लड़की रिक्शे से गिर गयी और उसकी अंगुली भी कट गई / भीड़ भरे चौराहे पर यह सनसनी वारदात हुई लेकिन स्थानीय प्रशासन को कोई मतलब नहीं / जिसकी अंगुली कटी ,दर्द उसी को होगा लेकिन प्रतिक्रियाओं से उसका दर्द कम न होगा / ठीक इसी प्रकार विश्व में कहीं भी कोई आतंकी वारदात होती है तो इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट और सोशल मीडिया को पूरे दिन का काम मिल जाता है /कोई आतंक को इस्लामिक आतंकवाद बोलता है तो कोई आतंक को धर्मनिरपेक्ष कहता है लेकिन आतंकवाद के मूल कारण पर कोई विचार करने को तैयार नहीं / बेरोजगारी जब तक रहेगी तबतक आतंकवाद भी जीवित रहेगा / एससीएसटी छात्रों के लिए प्रवेश परीक्षाओं से लेकर सरकारी नौकरियों के फार्म मुफ्त वितरण का नियम है जबकि सामान्य छात्रों की जेब काटी जाती है लेकिन नौकरी फिर भी रिश्वत से ही मिलती है तो अब पाठक तय करें कि यह सामाजिक न्याय है या आतंकवाद ?केंद्र सरकार ने समूह ग और घ के लिए इंटरव्यू ख़त्म कर दिए लेकिन क्या इससे भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया बल्कि अब लिखित परीक्षा में ही सेटिंग शुरू हो गई ?न्यायालयों में जब तारिख पर तारिख लगती है और तारिख जानने के लिए भी पेशकार को घूस देनी पड़ती है तो न्यायलय से न्याय मांगने वाले आवेदक के दिल से कितनी दुआएं निकलती होंगी ?सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ,लेबरकोर्ट ,सर्विस ट्रिब्यूनल, सेल्स टैक्स, आयकर, कस्टम जैसे विभागों के भी कितने वकील अपने मुवक्किल को अपनी फीस की रसीद देते है ?गली मोहल्लों में बैठे अयोग्य अमान्य डिग्रीधारीधारी डाक्टर भारत में न जाने कितने मरीजों को रोजाना परमात्मा के दर्शन करवा रहे हैं उतने तो पूजा पाठ करने वालों को भी नहीं होते होंगे और हर शहर में फर्जी डिग्रीवाले कैंसर रोग विशेषज्ञ जनता को मार रहे हैं और जादू टोना तंत्र मन्त्र ज्योतिष प्रवचन देने वाले बाबाओं के शोषण को जनसेवा कहेंगे या आतंकवाद !!
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