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करों का उपयोग पारदर्शी हो

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करों का उपयोग पारदर्शी हो
पीएम मोदी ने आयकरदाताओं की वर्तमान संख्या पांच दशमलव तीन को बढ़ाकर दस करोड़ करने का आयकर विभाग को दिशा निर्देश दिये और आयकर प्रणाली को सरल करने का सुझाव दिया लेकिन भले ही आयकर देने वाली संख्या साढ़े पांच करोड़ है लेकिन साढ़े पांच करोड़ आयकरदाता आयकर वकीलों और चार्टर्ड अकाउटेंटस् को हर वर्ष न्यूनतम साढ़े पांच हजार करोड़ रुपिया बतौर फीस देते हैं और आयकर विभाग को रिश्वत का कोई सरकारी आंकड़ा होता नहीं परन्तु इतना तो सत्य है कि कोई भी वकील रिटर्न भरने के हजार रुपिया से कम नहीं लेता और अप्रत्यक्ष कर देने वाले तो एकसौ पच्चीस करोड़ भारतीय हैं क्योंकि बाजार में बिकने वाली वस्तु पर उत्पाद कर एवं सीएसटी लगा होता है जो अन्तोत्गत्वा उपभोग्ता ही भरता है लेकिन गम्भीर प्रश्न यह है कि जनता से वसूले जा रहे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का केंद्र एवं राज्य सरकारें उपयोग प्रदेश और देश के विकास में खर्च न करके बल्कि अपने वोटबैंक पर न्यौछावर करती हैं/उदाहरण के तौर पर दादरी के इखलाक कांड पर करोड़ों रुपियों का मुआवजा न्यौछावर करदाताओं के साथ छल है क्योंकि मुआवजा यातो तो अपराधिक परिवार से वसूला जाता याफिर राजनीतिक पार्टियाँ अपने फंडों से देते लेकिन देश का दुर्भाग्य देखिए कि प्राकृतिक आपदाओं में मिलने वाला दान सीएम या पीएम रिलीफ फंड में जाता है और राजनेताओं के दिमाग का खेल यह है कि इस खर्च का कभी ऑडिट भी नहीं हो सकता और इस खर्च को आरटीआई कानून से भी बाहर रखा गया है /दुर्घटना उपरांत मुआवजा वितरण उस व्यक्ति या परिवार द्वारा दिये गये आयकर अनुपात में होना चाहिये क्योंकि मुआवजा दण्ड तो करदाता भरे और वाहवाही नेताओं के मुकुट पर ?मजे की बात देखिए कि वोटबैंक को खुश रखने हेतु बँटने वाली सब्सिडी का भार भी करदाता के गले पड़ता है जबकि राजनीतिक दलों को मिलने वाला राजनीतिक दान आयकर मुक्त है और हर राजनीतिक पार्टी के खाते में हजारों करोड़ रुपिया जमा है और नेताओं के ऊपर तो कुबेर भगवान अतिप्रसन्न रहते हैं /रावण को भी पता था कि उसके पास कितना स्वर्ण और धन है लेकिन नेताओं को तो यह भी नहीं पता होता क्योंकि इनके खजाने में धन निकासी का तो कोई मार्ग ही नहीं है केवल धन डालने का छेद बना हुआ है और गुल्लक की गहराई सीमा तो शायद कुबेर भी न नाप सकें ?मोदी भी कोई अछूत नहीं है क्योंकि सीएम और पीएम सीट के लिए चुनाव मुफ्त में नहीं लड़ा जाता /नगरनिगम पार्षद और नगरपंचायत नगरपालिका मेम्बर बनने के लिए ही जब बीस पच्चीस करोड़ रुपया खर्च हो जाते हैं तो भाषण देने से पहले मोदी साहब भी अपने चुनावी फंडिंग का गुप्त सोर्स जनता को बताते तो निसंदेह मुसलमान भी उनकी ईमानदारी के मुरीद हो जाते /रेलवे और हवाई जहाज दुर्घटना का मुआवजा यात्री के टिकट मूल्य पर आधारित होता है तो फिर साम्प्रदायिक अथवा सामाजिक दुर्घटनाओं पर मुआवजा पीड़ित दद्वारा दिए गये टैक्स पर आधारित क्यों नहीं ?विदेशों में कालाधन इन्ही नेताओं का है क्योंकि आम आदमी तो दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में रहता है /जिस जन धन योजना का भौंपू पीएम बजा रहे हैं उन खातों को खुलवाने में बैंकों का इतना खर्च हुआ कि हर बैंक का प्रॉफिट एक तिहाई रह गया और जिस बीमा का भाषण पीएम दे रहे हैं उसका प्रीमियम खातेदार ने नहीं बल्कि बैंकों के कर्मचारियों ने अपनी जेब से भरा है ,अगर पीएम यह सच्चाई नहीं जानते हैं तो देश का दुर्भाग्य है कि भाषण देने वाला सच्चाई से अंजान है /वर्तमान पीएम ने व्यापारियों और उद्योगपतियों का जीना हराम कर दिया है क्योंकि शोषित पीड़ित वंचित गरीब पिछड़ा मजदूर शब्दों ने समाज में एक ऐसी खाई खड़ी करदी है जिसे पाट पाना असम्भव है / जेटली साहब की मेहरबानी से बिल्डर,सर्राफा और लेबर बेस्ड उद्योगपतियों के कारोबार ठप्प पड़े हैं तो इन प्रतिष्ठानों में काम करने वाले मजदूरों को पेट क्या मोदी भरेंगे ?एक केंद्रीय मंत्री कहता है कि निजी क्षेत्र में 27 पर्सेंट आरक्षण होगा यानी अब निजी सेक्टर भी बंद करवाने की मोदी सरकार की योजना है /
कांग्रेस ने 60 साल राज किया तो इसमें लाख बुराई सही लेकिन कुछ तो बात थी कि 60 साल तक सत्ता में टिके रहे थे /कांग्रेस की पहचान भ्रष्टाचार पर्याय है ,ठीक बात है लेकिन वर्तमान सरकार के कारनामे भी जनता को बाद में समझ में आएंगे क्योंकि जेटली महाशय केवल एक वकील है कोई अर्थशास्त्री नहीं और न पीएम मोदी ही अर्थशास्त्री हैं लेकिन किसी योग्य अर्थशास्त्री का परामर्श मानना इनको अपमान लगता है /चार्टर्ड अकाउंटेंट को मोदी और जेटली मूर्ख समझते हैं क्योंकि स्वामी रामदेव के अनुग्रह पर लोकसभा चुनाव से पहले तालकटोरा स्टेडियिम में पंद्रह सौ चार्टर्ड अकाउटेंट ने जेटली को करप्रणाली सरलीकरण हेतु कई महत्पूर्ण सुझाव एक पुस्तिका के आकर में बनाकर प्रस्तुत किए थे जिसे जेटली ने जुलाई 2014 में ही बेकार कहकर फेंक दिया जबकि सरकार बने केवल दो महीने ही हुए थे /
रचना रस्तोगी

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