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कहने को चिकित्सक को धरती का भगवान कहा जाता है लेकिन यदि यही भगवान् मानवता का हत्यारा बन जाय तो ऊपर वाला भगवान् भी रो पड़ता है / ईश्वर जब किसी रोगी पर दया करते हैं तो रोगी को चिकित्सक के पास भेजते हैं और यह चिकित्सक जब अत्यधिक प्रसन्न होता है तो रोगी को दर्दनाक मृत्यु की ओर तिल तिल खिसकाकर ईश्वर के पास भेजने की रणनीति अपनाता है / सोशल मीडिया ,प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को यातो केवल राजनेताओं में दिलचिस्पी रहती है या फिर केवल उन विवादों को अधिक महत्व दिया जाता है जिनसे भारत में धार्मिक और सामाजिक असंतुलन, भेदभाव और वैमनस्य को बढ़ावा मिलता है / बहुत सारे डाक्टर ,सामाजिक संगठन और बुद्धिजीवी प्राणी इस समय सोशल मीडिया में किसी एक विशेष राजनेता और एक विशेष राजनीतिक दल के अघोषित अवैतनिक प्रवक्ता के रूप में काम करते दीखते हैं लेकिन समाज में बढ़ रही कुरीतियों और सामाजिक जघन्य अपराध पर इनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती क्योंकि वे स्वयं जो इसमें लिप्त जो होते हैं /राजनीतिक असहिष्णुता और राजनीतिक भ्रष्टाचार पर बुद्धिजीवी और डाक्टर बहुत लम्बे लम्बे लेख प्रकाशित करते हैं और रात दिन किसी एक राजनीतिक दल या राजनेता को जी भरके कोसते रहते हैं लेकिन यह भूले रहते हैं कि तीन अंगुलियां अपनी ही ओर हैं / मानवाधिकार ,मौलिक अधिकार और सामाजिक अधिकार ये शब्द अक्सर कोर्ट कचहरियों से लेकर न्यूज चैनलों और अख़बारों में नित्य प्रतिदिन की चर्चा में प्रयोग होते हैं लेकिन इन अधिकारों का हनन सबसे अधिक वो ही लोग करते हैं जो इनकी दुहाई देते हैं /प्राइवेट चिकित्सा क्षेत्र में गला काट प्रतिस्पर्धा है और हर चिकित्सक रातों रात अरब पति बनना चाहता है और पैसा कमाना कोई बुरी बात नहीं है बल्कि यह शतप्रतिशत सत्य है कि जीवन जीने के लिए पैसा सबसे अधिक आवश्यक सामग्री है लेकिन पैसा कमाने के लिए किसी की जान लेना कहाँ तक उचित है ? मांस बेचने वाले भी पशुओं की हत्या को हलाल या झटका नाम देकर अपना व्यवसाय चलाते हैं और पशु हत्या हलाल द्वारा हो या झटके द्वारा हो ,पशु थोड़ी देर में मर ही जाता है लेकिन यदि कोई मनुष्य किसी मनुष्य को तिल तिल मौत की तरफ खिसकाकर यमराज तक पहुंचाये तो इसको क्या कहेंगे ?जी हाँ !! आजकल मेडिकल प्रेक्टिस में स्टीरॉयड दवाईयां प्रयोग में हो रही हैं और इनमे प्रेडिनिसोलोन नामक दवाई सबसे अधिक प्रयोग में है / पांच ,दस और बीस मिलीग्राम में मिलती यह दवाई सबसे सस्ती भी है और मेडिकल प्रैक्टिशनरों के साथ साथ चर्म रोग विशेषज्ञों की प्रथम पसंद भी है / माना कि यह प्रेडिनिसोलोन जीवन रक्षक दवाई है और इसका प्रयोग अतिआवश्यक आकस्मिक परिस्थितियों में किया जाना निर्देशित है क्योंकि यह धीरे धीरे हड्डियों को खोखला और मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता का क्षय भी करती है लेकिन अगर यही दवा यानि प्रेडिनिसोलोन जीवन का दुश्मन बन जाय तो ! चिकित्सकों को अपने पेशे में हर समय यह डर बना रहता है कि अगर मरीज को शीघ्र आराम न मिला तो मरीज डाक्टर बदल सकता है और हर समय असुरक्षा की भावना चिकित्सक को अमानवीय कृत्यों की ओर धकेलने में सहायक होती है इसलिए साधारण रोगों जैसे नजले, खांसी, जुकाम, सर्दी,ठण्ड लगने ,एलर्जी , सांसफूलने ,दमा ,बदनदर्द ,कमरदर्द और टीबी से लेकर आँतों की बीमारियों तक में प्रेडिनिसोलोन दवाई जमकर प्रयोग हो रही है / शुरू शुरू में मरीज को पांच सात ,उसके बाद पंद्रह दिन और उसके बाद महीना दो महीना यह दवाई खिलाई जाती रहती है / और कभी आधी गोली तो कभी पूरी गोली दिन में एक बार दो बार और तीन बार खाने तक का निर्देश डाक्टर के प्रेस्क्रिप्शन पर अंकित होता है / इस दवाई से मरीज ठीक होने का अहसास तो करता है लेकिन पूर्णतः ठीक भी नहीं होता इसलिए मरीज डाक्टर से निरन्तर संपर्क बनाये रखता है और डाक्टर मूल बीमारी से सम्बंधित दवाइयों के साथ साथ इस प्रेडिनिसोलोन को खिलाना बंद भी नहीं करता / और यह जानबूझकर किया जाता है / अब आप कहेंगे कि इसमें तिल तिल मरने जैसी या मानवधिकार / मौलिक अधिकार / सामाजिक अधिकार के उलंघन की बात कहाँ से आ गई ?इस,दवाई को खिलाने में ऐसा कौन सा जघन्य अपराध हो गया कि चिकित्सकीय पेशा अमानवीय कहा जा रहा है / जी हाँ !! यही बात है कि प्रेडनिसोलोन दवा के पांच छह महीने के निरन्तर सतत सेवन के बाद रोगी को मधुमेह का रोग भी लग जाता है यानि एक साधारण एलर्जी या खांसी या जुकाम या बुखार या साँस की समस्या से पीड़ित रोगी मात्र पांच छः महीने में मधुमेह का शिकार भी बन जाता है और भारत सरकार स्वयं यह कहती है कि भारत की चालीस प्रतिशत आबादी इस समय मधुमेह से पीड़ित है / ड्रग इंड्यूस्ड मधुमेह फैलाना का आखिर अपराधी कौन है ?जहाँ जीवन संकट में हो और आकस्मिक उपचार के रुप में या फिर किडनी फैल्योर में इस दवा का उपयोग होना था वहां इस दवाई को एक आम दवा के रूप में प्रयोग होने लगा तो भारत में मधुमेह के रोगियों की संख्या में चक्रवृद्धि ब्याज की दर से वृद्धि होना सुनिश्चित सा ही था / देश का दुर्भाग्य है कि प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में कई चिकित्सक विधायक और सांसद भी हैं लेकिन सरकारों के मंत्रिमंडल में एक चिकित्सक को कभी भी स्वास्थय मंत्रालय नहीं दिया जाता / बिहार में स्वास्थय मंत्री श्रीमान लालू जी सुपुत्र हैं जिनकी शैक्षिक योगयता मैट्रिक पास भी नहीं और यूपी में मुख्यमंत्री स्वयं यह दायित्व संभाले हुए हैं जबकि वे इंजिनियर हैं और दिल्ली राज्य सरकार के स्वास्थय मंत्री का भी मेडिकल शिक्षा से दूर दराज का कोई सम्बन्ध नहीं है और केंद्र सरकार में तो दो दो चिकित्सक मंत्रिपद संभाले हुए हैं लेकिन इन दोनों चिकित्सकों को भी स्वास्थय मंत्रालय से दूर ही रखा गया है / कई मेडिकल ग्रेजुएट आईएएस और पीसीएस होते भी स्वास्थय सचिव नहीं बन पाते यानि सरकार स्वयं नहीं चाहती कि भारत की जनता को उचित समय पर उचित डाक्टर द्वारा उचित दवाई मिले / कहने को सरकारें और मीडिया यह रोना रोते रहते हैं कि भारत में डाक्टरों की भारी कमी है लेकिन कभी यह सोचा है कि अगर डाक्टर कम होते तो क्यों डाक्टरों के अख़बारों और न्यूज चैनलों में विज्ञापन आते और क्यों इस मानवीय पेशे में झोला छाप से लेकर सेवन स्टार हॉस्पिटल तक के मरीज रेफरल प्रणाली में तीस चालीस प्रतिशत का कमीशन लिया दिया जाता है ? शुरू शुरू में साधारण पांच दस मरीज प्रतिदिन देखने वाले डाक्टर की क्लिनिक में मात्र दो तीन साल बाद सौ सौ मरीज क्लिनिक ओपीडी में आने शुरू हो जाते है क्योंकि नये मरीज तो कम लेकिन पुराने मरीज ही हर समय ओपीडी की शोभा बढ़ाते हैं और नंबर लिखवाने के लिए मरीज दो दो दिन तक की प्रतीक्षा सूची में अपना नाम दर्ज कराते हैं / डाक्टरों के रजिस्ट्रेशन से लेकर चिकित्सा मानकों को तय करने की जिम्मेदारी मेडिकल काउन्सिल की है लेकिन अधिकांश काउन्सिल पदाधिकारी प्राइवेट मेडिकल कॉलिजों को मान्यता देने के एवज में मोटी कमाई में ही संलिप्त रहते हैं जबकि काउन्सिल में इंस्पेकटर का काम केवल मेडिकल कॉलिजों में शिक्षण कार्रवाही और उपकरणों के निरीक्षण का ही नहीं बल्कि हर शहर हर कसबे और हर गांव में जाकर मेडिकल प्रैक्टिशनरों के प्रेस्क्रिप्शन की भी जाँच करना होता है / सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटलों में जाकर मरीजों के उपचार और उपचार में प्रयोग होने वाली दवाइयों और किस रोग को किस चिकित्सक को देखने का अधिकार है यह भी मानकों में खरा उतरने की जाँच करना तक मेडिकल काउन्सिल का कर्त्तव्य एवं दायित्व है लेकिन विडंबना देखिये कि सुप्रीम कोर्ट की बार बार कई चेतावनियों के बाबजूद भी किसी भी सरकार ने आज तक मेडिकल काउन्सिल भंग नहीं की ?काउन्सिल मेम्बरों के चयन से लेकर काउन्सिल अध्यक्ष तक का चयन कई करोड़ों की खूसखोरी पर आधारित है लेकिन फ़िलहाल विषय काउन्सिल की जिम्मेदारी से कहीं चिकित्सकों के स्वयं की जिम्मेदारी निभाने का है कि मानवीय पेशे के साथ साथ धरती का ईश्वर जैसी उपाधि केवल चिकित्सक को ही मिलती है तो इतने सर्वोच्च सम्मान के बाबजूद प्रेडनिसोलोन खिला खिलाकर एक मानवीय जिंदगी को तिल तिल ख़त्म करना क्या मानवता है ? सोचना तो पड़ेगा ही क्योंकि जब भारत की चालीस प्रतिशत आबादी मधुमेह से ग्रसित है तो इसके प्रमुख कारणों में इस प्रेडनिसोलोन का जानबूझकर प्रयोग करना भी सूचीबद्ध है और अब इस तरह के चिकित्सकों पर क्या कार्यवाही होनी चाहिये और यह सब होने देने के लिये कौन जिम्मेदार है ,यह भी जबाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिये /क्या भारत की जनता देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से इस जघन्य अपराध पर काउन्सिल और स्वास्थय मंत्रालय के निकम्मेपन के लिये कोई उत्तर नहीं मांग सकती क्योंकि गरीब बेबस जनता को आखिर क्यों और किस अपराध के लिये धीरे धीरे जहर खिलाया जा रहा है ?
श्रीमती रचना रस्तोगी
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