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दिल्ली चुनाव पूर्णतः वैज्ञानिक था

bharat
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दिल्ली विधान सभा चुनाव राजनीतिक नही बल्कि पूर्णतः वैज्ञानिक था क्योंकि इस चुनाव में बुद्धि बल ,धनबल और श्रमबल इन तीनों का वैज्ञानिक अनुपात में समिश्रण था /लेकिन यह चुनाव उन सभी दलों के लिए एक चुनौती भी दे गया जो मुस्लिम तुष्टिकरण को ही राजनीतिक आधार मानते रहे हैं और साथ में देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्र के सुरक्षा एवं गुप्तचर तंत्र पर प्रश्न भी खड़ा कर गया / अभी तक लोग यह ही नही समझ सके कि केजरीवाल ने आखिर नरेंद्र मोदी के विरुद्ध ही बनारस में चुनाव क्यों लड़ा था लेकिन वड़ोदरा में नही और केजरीवाल को चुनाव कौन सी शक्ति चुनाव लड़वा रही थी ? इसी प्रश्न का उत्तर दिल्ली विधान सभा चुनाव में छिपा है /सबसे पहले दिल्ली विधान सभा के प्रत्येक वोटर का भौतिक सत्यापन करना और दूसरी बात प्रत्येक वोटर के पास अपना प्रतिनिधि नियमित रूप से भेजना और तीसरी बात झौंपड झुक्की निवासियों से लेकर ऑटो चालकों ,सड़क किनारे जमे व्यापारियों और मुसलमानों से निरंतर संवाद बनाये रखना ये तीनों बातें वैज्ञानिक पहलु सिद्ध करती हैं लेकिन इन सबके लिए जुझारू कार्यकर्ताओं को पहले इकठ्ठा करना और फिर उनको एकजुट बनाये रखने के साथ साथ उनको अच्छा खासा पारिश्रमिक देना तथा पिछले तीन महीनों में पूरी दिल्ली में जबरदस्त बड़े बड़े होल्डिंग लगाना और एफ़एम रेडियो के साथ साथ कुछ इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनल एंकरों द्वारा खुले प्रचार के पीछे आखिर पैसा किसका लगा यह उत्तर राष्ट्र की सुरक्षा एजेंसियां जितनी जल्दी खोज लें उतना ही राष्ट्रहित में होगा ?यह कहना कि गैरभाजपा दलों ने अपना वोट बैंक आप को स्थान्तरित करा इसलिए भाजपा की हार हुई ,विशुद्ध बौद्धिक दिवालियेपन का लक्षण है क्योंकि यह कोई फंड नही था कि एक खाते से दूसरे खाते में ट्रांसफर कर दिया / चुनाव परिणाम आते ही कुछ भारत विरोधी संगठनों के बधाई संदेशों का आना बहुत कुछ बताने के लिए पर्याप्त है और भारत जैसे गरीब देश में जहाँ दो वक्त की रोटी और दो सौ रूपया देकर नेताओं की रैलियों में लाखों की भीड़ इकठ्ठा की जाती रही है वहीं कुछ हजार रूपया मासिक वेतन और खाने पीने रहने की भरपूर आर्थिक मदद करके वॉलंटियर्स की फ़ौज खड़ी करना कौन सा बड़ा काम है लेकिन इसके लिए फंड इकठ्ठा करना किसी आम आदमी तो दूर की बात बल्कि मध्यम स्तरीय सामाजिक संस्था के भी बस की बात नही है क्योंकि भारत में लगभग दस लाख एनजीओ हैं और उनमे से नब्भे प्रतिशत की आर्थिक फंडिंग अमेरिका और अरब खाड़ी देश कर रहे हैं / अतः इन देशों का भारतीय राजनीति में दखल होना कोई आश्चर्य की बात नही क्योंकि अधिकांश एनजीओ भारत के विकास क्रम को बाधा पहुंचाने में ही क्रियाशील हैं और देश की सारी राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी विदेशी सरकारों को उपलब्ध कराते रहे हैं और भारतीय वेशभूषा में छिपे इन गद्दारों और जासूसों की पहचान और पकड़ करना एक राजनीतिक मुसीबत और विडंबना है / ऐसा नही है कि विदेशी निर्देशों का पहली बार ही कोई मामला प्रकाश में आया है बल्कि एक बड़े प्रदेश का पिछला विधान सभा और पिछले दो लोकसभा चुनावों में भी विदेशी शक्तियां के भरपूर हस्तक्षेप के प्रमाण राष्ट्र की सुरक्षा एजेंसियों के पास हैं लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा इनपर पर्दा डाले रही और चूंकि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद विदेशी शक्तियों को अपने राजनीतिक मोहरों के धराशाही होने का संदेह प्रगाढ़ हो गया था इसलिये गोपनीयता बनाये रखने के लिए सामाजिक आंदोलन के बहाने ही एक राजनीतिक विकल्प पैदा करना लक्ष्य था इसलिए इसका पहला प्रयोग 2013 में दिल्ली विधान सभा चुनाव में और दूसरा प्रयोग 2014 लोकसभा में और तीसरा 2015 दिल्ली विधान सभा चुनाव में हुआ और इन सभी चुनावों में राजनीति को वैज्ञानिक स्वरुप दिया और इस वैज्ञानिक परीक्षण के परिणाम भी वैज्ञानिक आंकलन के हिसाब से आये /इस का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि भाजपा का परमपरागत वोट बैंक तो सुरक्षित रहा लेकिन येन केन प्रकारेण राजनीतिक प्रलोभनों और अनुदानों पर आश्रित वोट बैंक आम आदमी पार्टी के खाते में चला गया /
रचना रस्तोगी

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