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सिटीज़न फर्स्ट “काहे में”
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25 दिसंबर को वाराणसी में अपने राजनीतिक प्रवचन में देश के पीएम श्रीमान नरेंद्र मोदीजी ने 25 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाते हुए एक नये कार्यक्रम की भी विधिवत घोषणा की कि सिटीज़न फर्स्ट / माननीय पीएम साहब को कुछ दिन बाद एक विभाग इसी मद में खोलना पड़ सकता है जो उनको प्रतिदिन यह स्मरण कराता रहे कि पीएम साहब ने कौन कौन सी घोषणाएं कर रखी हैं / अब सुशासन दिवस पर सिटीज़न फर्स्ट कार्यक्रम की घोषणा करते समय महोदय यह भी बता देते कि सिटीज़न फर्स्ट में नागरिक का सबसे पहले रिश्वत देकर अपना काम कराना है या फिर न्यायलय की शरण जाकर न्याय पाना है यानि दोनों ही स्वरूपों में नागरिक को अपनी जेब ढीली करनी ही पड़ेगी क्योंकि यूपी में तो फ़िलहाल एक ही नीति कारगर है कि भाई रिश्वत दिए बगैर कुछ होने वाला ही नही है / यहाँ यूपी का नाम इसलिए लिया गया कि जिन दो महापुरुषों को सुशासन दिवस पर भारत रत्न के लिए नामांकित किया गया है उन दोनों का यूपी से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि जब अटलजी पीएम थे तो वे उस समय लखनऊ के ही सांसद थे और महामना मालवीय तो पैदा ही यूपी में हुए थे और यूपी में ही माननीय पीएम ने सिटीज़न फर्स्ट कार्यक्रम की नींव रखी है इसलिए यूपी का गुणगान किये बगैर संवाद पूरा ही नही होगा / हां तो बात थी कि सिटिज़न फर्स्ट कार्यक्रम में देश का नागरिक किससे संवाद करे जो उसकी बात सुन सके और उसको न्याय दिला सके ?पीएम साहब को सबसे पहले अपने से ही शुरुवात करनी होगी कि उनके पास पीएम रहते प्रतिदिन हजारों अपीलें न्याय हेतु आतीं होंगी तो पीएम साहब ने अब तक कितनी अपीलों पर अपना विवेक प्रयोग करके देश के नागरिक को न्याय दिया है ?यह स्पष्ट आलेख उनको करना चाहिए था क्योंकि उनको पारदर्शिता और स्वच्छता के साथ साथ तुरत न्याय की ईमानदार वकालत कई बार की है / यूपी में किसी सामान्य नागरिक को किसी भी सरकारी विभाग में कोई काम कराना है तो उसके पास केवल तीन ही विकल्प हैं ,पहला विकल्प कि सत्ताधारी पार्टी के किसी भी विधायक का सिफारशी पत्र लेकर कार्यालय में जाय और दूसरा विकल्प कि अधिकारी द्वारा मांगी गयी रिश्वत देकर अपना काम कराये और तीसरा विकल्प कि उच्च न्यायलय जाकर न्याय मांगे लेकिन सामान्य नागरिक के लिए ये तीनों विकल्प ईश्वर प्राप्ति से भी अधिक दुश्वार एवं कठिन हैं और जिस क्षेत्र से वह नागरिक आता है और वहां का क्षेत्रीय विधायक सत्ताधारी पक्ष से सम्बंधित नही है तो पहला विकल्प तो समाप्त हो गया और यदि जेब में पैसे नहीं हैं तो दूसरा और तीसरा विकल्प खुद ही दम तोड़ गया / अब ऐसी स्थिति में सामान्य नागरिक माननीय राष्ट्रपति ,माननीय प्रधानमंत्री ,माननीय राज्यपाल और माननीय मुख्यमंंत्री को रजिटर्ड स्पीडपोस्ट से पत्राचार को आधार बनाकर अपनी पीड़ा अपना दुःख और अपनी बात महानुभावों के समक्ष रखता है लेकिन जब किसी भी माननीय के कार्यालय से कोई उत्तर न आता हो तो पीएम साहब के राजनीतिक प्रवचनों में बोले गए महामंत्र सिटीज़न फर्स्ट का क्या भाष्य निकाला जाय ? यूपी की प्रशासनिक व्यवस्था की वर्तमान स्थिति यह है कि प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग तो माननीय राज्यपाल सचिवालय से निर्गत निर्देशों और आदेशों को पढ़ते ही नही तो उनपर अमल होने का तो सवाल ही नही उठता ?अगर पीड़ित नागरिक मुख्यमंत्री कार्यालय या स्वास्थय मंत्री कार्यालय में जाकर अपने प्रार्थनापत्र पर हुई कार्यवाही की प्रगति जानना चाहे तो कार्यालय में बैठे बाबू एकसुर में चिल्लायेंगे कि अजी ! रोजाना हजारों चिट्ठियां आतीं हैं ,किस किसका हिसाब रखें ,फाड़कर फेंक दी जातीं हैं ,यानि जिस चिट्ठी को सीम पीएम गवर्नर या राष्ट्रपति को भेजने में नागरिक के कम से कम पचास रूपया लग खर्च हो जाते हैं उसका यह हश्र होता है / और जिस जिस नागरिक ने माननीय पीएम के राजनीतिक प्रवचन में बोले गए महामंत्र सिटीज़न फर्स्ट पर अनुसरण करके माननीय पीएम ,सीएम,राज्यपाल या राष्ट्रपति महानुभावों को अपनी पीड़ा रजिटर्ड स्पीडपोस्ट से भेजी थी और नागरिक को न्याय मिलना तो दूर बल्कि महानुभावों से कोई उत्तर तक आया हो तो गरीब नागरिक के खर्च हुए पैसे का हर्जाना किस्से वसूला जाय ? यूपीए सरकार ने आरटीआई एक्ट 2005 बनाया था लेकिन यह नियम यूपी के स्वास्थ्य विभाग में लागु नही होता क्योंकि यहाँ तीस दिनों में तो क्या बल्कि तीस हफ़्तों तक में सूचना नहीं दी जाती और प्रथम अपीलीय अधिकारी विशेष सचिव अवश्य है वहां से भी आवेदक को निराशा ही मिलती है तो प्रश्न यही उठता है कि राजनेताओं के राजनीतिक प्रवचनों और इनके राजनीतिक महामंत्रों का आखिर निष्कर्ष और भाष्य क्या है ?मैं कोई आरोप नहीं लगा रहीं हूँ बल्कि साक्ष्य एवं प्रमाणों के आधार पर पर यूपी के स्वास्थय विभाग की प्रशासनिक व्यवस्था को चित्रित कर रही और इन सबके प्रमाण माननीय पीएम,माननीय सीएम,माननीय राज्यपाल और माननीय राष्ट्रपति महोदय के कार्यालयों में धूल फांक रहे हैं / अतः देश के माननीयों से यह प्रार्थना है कि अपने राजनीतिक प्रवचनों में कम से कम सामान्य नागरिक को तो बख्श दें क्योंकि नेताओं के असत्य महामंत्रों के उच्चारणों में उलझकर बेचारा सामान्य नागरिक अपनी मेहनत से कमाई दौलत में से अपनी बीबी बच्चों का पेट काटकर माननीयों को रजिस्टर्ड डाक से पत्र भेजकर अवांच्छित न्याय की आस मन में जगाये रहता है और नेताजी का जयकारा बोलता रहता है/
रचना रस्तोगी
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