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धर्मगुरुओं का लाइसेंस क्यों नही

bharat
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भारत में प्राइमरी से लेकर सर्वोच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए एक काउन्सिल बनी हुई है जिसकी सस्तुति के बाद ही सम्बंधित मंत्रालय मान्यता प्रदान करता है लेकिन धर्मशिक्षा के क्षेत्र में कोई संस्था या काउन्सिल नही है और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर रामपाल जैसे अपराधी संत बन जाते हैं /कहने को इस्लामिक मदरसों पर आतंकी या देशविरोधी गतिविधियों के संचालन के आरोप लगते रहते हैं लेकिन अन्य धर्मों को आधार बनाकर चल रहे कई आश्रमों मठों न्यासों मंदिरों जिन्नालयों समितियों चर्चों गुरुद्वारों में भी कोई राष्ट्रनिर्माण का काम नही चल रहा है / कालाधन को सफ़ेद बनाने के आरोप ही नही बल्कि देहव्यापार व्यभिचार पापाचार भ्रष्टाचार के आरोप में सभी धर्मों के कई धर्मगुरु सुर्ख़ियों में रह चुके हैं /नरेंद्र मोदी पिछले एक साल से यही कहते आ रहे हैं कि भारत को लोग पहले सांप संपेरों का देश मानते थे लेकिन वास्तविकता में आज का भारत बाबा और बाबुओं का देश है / समय की आवश्यकता है कि धर्मशिक्षा बांचने वालों की अब एक काउंसिल बननी चाहिए क्योंकि धर्मशिक्षा प्रसार प्रचार अब एक पूर्ण व्यवसाय का स्वरुप ले चूका है / शायद ही भारत का कोई ऐसा शहर होगा जहाँ किसी न किसी स्थान पर कोई न कोई बाबा कहीं न कहीं धार्मिक उपदेश दे रहा होगा / सभी धर्मों के धर्मगुरु धर्मशिक्षा को व्यवसाय ही मानकर चल रहे हैं और इनके शिविरों में भूत प्रेत बाधा निवारण से लेकर दुःखनिवारण के दावे प्रस्तुत किये जाते हैं और बाकयदा सभी स्थानीय अख़बारों में इनके बड़े बड़े विज्ञापन छापे जाते हैं ,बड़े बड़े होल्डिंग शहरों के चौराहों पर टाँगे जाते हैं लेकिन इनकी कमाई का कोई ब्यौरा सरकार के पास नही होता है / एक सुव्यवस्थित गोरखधंधा धर्म के नाम पर पनप रहा है /सप्ताह भर चलने वाले भगवत कथा आयोजनों में कथावाचकों के भव्य पंडाल और बैंड बाजे आर्केस्ट्रा पर बजती भजन धुनें कोई मुफ्त में संचालित नही हो रही हैं / कथावाचकों की फीस कोई सौ दो सौ रूपया नही बल्कि बाबाजी की प्रसिद्धि के अनुरूप है और इनके प्रवचन की सीडी केसेट पुस्तकों की आय का भी कोई वित्तीय रिकॉर्ड नही होता है / धार्मिक चैनलों से लेकर न्यूज चैनलों में प्रसारित प्रवचनों का भी खर्च आधा घंटे के प्रचार के आधार पर तय होता है और सारे न्यूज चैनल रोजाना ही अपने चैनलों पर ज्योतिषियों तांत्रिकों धर्मगुरुओं के प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित करते हैं और जब येही बाबा किसी अपराधिक गतिविधियों में पकडे जाते हैं तो येही न्यूज चैनल बाबाजी की धज्जियाँ उड़ाते हैं / धर्म और अधर्म की परिभाषा तो कोई क्या प्रमाणित करेगा लेकिन जिसका धंधा चल निकला उसके लिए सब धर्मगत है और जो सफल नही हो पाया वह इसे अधर्म कहने से नही चूकता क्योंकि धर्मकथा बांचना भी एक प्रतिस्पर्धात्मक व्यवसाय है ,हर किसी को इतनी प्रसिद्धि नही मिलती है कि उसका नाम बिक सके / ब्रांडिड बाबाओं के राजनीतिक संबंधों पर टिपण्णी करना उचित नही है क्योंकि हर कोई बड़ा राजनेता किसी न किसी ब्रांडिड नेता का शिष्य है और नेता बनने से पहले भी किसी न किसी ब्रांडिड बाबा की शरणागति कर चूका होता है और चूंकि बाबाओं का एक अच्छे जनमानस समूह पर पकड़ होती है तो राजनेता को यह भीड़ वोट के रूप में ही दिखती है और इस वोट बैंक की खातिर राजनेता बाबाजी की हर प्रकार की गैरकानूनी सहायता देने को तत्पर रहते हैं /अगर आप किसी शहर में छोटा सा भी मकान बनाने की सोचें तो विकास प्राधिकरण के बाबुओं की जेब गर्म किये बगैर नक्शा पास ही न होगा और भवन निर्माण के बीच बीच में भी विकास प्राधिकरण का जेई घूस लेकर ही जाता है और सभी रिश्वत देते हैं इसमें कोई संशय नही है और जो कहता है कि उसने कोई रिश्वत नही दी तो वह शतप्रतिशत झूठ बोल रहा है क्योंकि भारत का कोई भी ऐसा नागरिक न होगा जिसने किसी सरकारी कार्यालय में काम पड़ने पर कभी भी अपने जीवन में किसी प्रकार की घूस न दी हो और दूसरी ओर ज़रा इन धर्मगुरुओं के आश्रमों को देखें तो ये खुले आम विकास प्राधिकरण के मानकों की धज्जियाँ उड़ाते दिखेंगे और कई कई मंजिला इनके आश्रम क्या बिना राजनीतिक सहायता के बन सकते है ?हर किसी बाबा का आश्रम इतना आलीशान होता है कि भव्यता भी इनके आगे शरमा जाय और बाबाओं की लक्जरी जिंदगी तो राजा महाराजाओं की शान शौगत से कहीं अच्छी है क्योंकि इनके यहाँ तो लेन ही लेन है देन तो है ही नही / एक एक आश्रम में कई कई वातानुकूलित कमरे बने होते हैं लेकिन कभी भी बिजली कर्मचारी इन बाबाओं के यहाँ छापे नही डालते क्योंकि विभागीय मंत्री स्वयं बाबाजी का आशीष मांगने के लिए लाईन में खड़ा रहता है अब किस बिजली अभियंता की हिम्मत है कि बाबाजी के आश्रम का बिजली लोड चेक कर सके ?अतः बिना राजनीतिक सहायता के बाबागिरी का धंधा नही चल सकता और नेताजी को भी वोट चाहियें तो नेताजी भी बाबाजी की मार्केटिंग एक अच्छे स्तर पर कराने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं यानि बाबागिरी और नेतागिरी एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं वर्ना क्या मजाल कि बाबागिरी इस तरह से अवैध कारोबार कर सकती होती ? नित्य प्रतिदिन किसी न किसी बाबा के गोरखधंधे का भंडाफोड़ होता है एक दो दिन मामला सुर्ख़ियों में रहता है और फिर भैंस गयी पानी में लेकिन यदि बुद्धिजीवी चाहें तो सरकार पर दबाब बना सकते है कि प्रत्येक राज्यसरकार अब अपने हर जिले में संचालित प्रत्येक मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे चर्च और बौद्ध मठ की निर्माण अनुमति से लेकर इसके संचालकों का पूरा अपराधिक, राजनीतिक, शैक्षिक एवं वित्तीय रिकॉर्ड और ब्यौरा एक वेबसाइट पर दर्ज करके इनका रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करे और साथ ही इनका बाकयदा लाइसेंस भी बनना चाहिए क्योंकि इन धर्मसंस्थाओं में व्यापारिक धंधे भी चलते हैं / गुप्त दान प्रथा बंद करके दानदाताओं का भी रिकॉर्ड रहना चाहिए तथा धर्मकथाओं का भी सम्पूर्ण सिस्टम जबाबदेही एवं पारदर्शी होना चाहिए ताकि गली मोहल्लों में चल रही व्यवसायिक आध्यात्मिक कथाओं की आड़ में कोई अपराधिक गतिविधि जन्म न ले सके /इस बात को कहने में मुझे कोई अतिशयोक्ति नही है कि आधुनिक भारत बाबाओं और बाबुओं का देश है क्योंकि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की हो लेकिन जिस जिस विभाग में पब्लिक डीलिंग है वहां का चपरासी भी करोड़पति है और क्लर्कों अधिकारीयों की संपत्ति की कोई थाह नही /एमपी में पड़ते लोकायुक्त के छापे स्वयं प्रमाणित करते हैं कि जिस काले धन को नरेंद्र मोदी विदेशों में ढूँढ़ रहे हैं उससे कहीं अधिक काला धन तो इन राष्ट्रीय कुबेरों यानि बाबाओं और बाबुओं के पास है /ऐसा नही है कि काले धन के कुबेर बाबू केवल एमपी में ही हैं शेष भारत के सरकारी कर्मचारी दूध जैसे सफ़ेद धन के स्वामी हैं बल्कि यूपी तो एमपी से कहीं बड़ा है /अभी हाल में यूपी के मुजफ्फरनगर के एक लेखपाल की कमाई का किस्सा उसके ही विभाग के कर्मचारी ने ईर्ष्यावश क्या खोला कि वह लेखपाल कई करोड़ों का मालिक निकला और पन्द्र दिन बीत जाने तक भी उसकी संपत्ति का आंकलन न हो सका यानि जब एक लेखपाल का यह हाल है और यूपी में कई हजार लेखपाल हैं तो इसी से केवल एक विभाग में ही काले धन का अंदाज लगाया जा सकता है जबकि लेखपाल अपने विभाग में सबसे छोटा पद है तो यह अनुमान लगाना सहज है कि विभागीय उच्च अधिकारीयों के पास क्या क्या होगा क्योंकि चोर वही जो पकड़ा जाय वर्ना सारे ईमानदार हैं /विदेशों से काला धन वापिस भारत लाने में मोदीजी के रास्ते में अंतर्राष्ट्रीय संधि बाधा बन रही हैं लेकिन इन राष्ट्रीय धन कुबेरों से काला धन से निकालने में कोई संधि बाधा नही है लेकिन बाधा है भी और वह है नेताओं और बाबुओं का सिंडिकेट जिसको तोडना मोदीजी के लिए सरल नही है /खैर बाबुओं से तो बाद में भी निबटा जा सकता है लेकिन राजनीतिक दृढ़ शक्ति हो तो बाबाओं के लिए लाइसेंस प्रणाली अमल में लाना कोई कठिन काम न होगा और यदि बाबागिरी का धंधा पारदर्शी एवं जबाबदेही हो जाता है तो भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की आधी लड़ाई तो स्वयं ही जीत लेंगे /
रचना रस्तोगी

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