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कथा सत्य और नारायण की
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बात किसी व्यक्ति विशेष या संप्रदाय विशेष या धर्म विशेष की भावना को ठेस पहुंचाने की नहीं है लेकिन एक विडंबना अवश्य है कि प्रत्येक हिन्दू माह की पूर्णमासी पर वैष्णव भक्त पवित्र नदियों के किनारे या अपने अपने घरों में सत्यनारायण की कथा कराते देखे जा सकते हैं और इस कथा में एक विशेष बात भी है कि कथा क्या है यह तो किसी को पता नही है कि पंडितजी यह जरूर बताएँगे कि अमुक व्यक्ति ने यह कथा करायी तो उसको अमुक अभीष्ट सिद्धि या लाभ हुआ और जिसने कथा कराने का संकल्प करने के बाद कथा नही करायी तो उसका अमुक अनिष्ट हुआ / हास्यास्पद बात यह है कि चौबीसों घंटों झूठ का अमल करने वाले सत्य नारायण की कथा आयोजित करते हैं और प्रतिज्ञा तो सत्य बोलने, सत्य श्रवण करने और सत्य को ही आचरण में ढालने की करते हैं लेकिन दैनिक व्यवहार में सत्य कोसों दूर रहता है /बुद्धि में अहंकार , मन में ईर्ष्या द्वेष राग वैमनस्य , वाणी पर हर समय स्थित अटल स्थिर व्यंग्य और रोगी काया इन सबके रहते मनुष्य सत्य तो दूर की बात ईश्वर भजन भी नही कर सकता ? वेद शास्त्र पुराण और संत वाणी सब एक सुर में समझाते हैं कि यदि व्यक्ति अपने जीवन में सत्य को शतप्रतिशत धारण कर ले तो उसको किसी पूजा या सत्संग की आवश्यकता ही नही है क्योंकि सत्य तो स्वयं नारायण है और पूरी जिंदगी गुजारने के बाद जब शव अर्थी पर लेट जाता है तो कंधे देने वाले मुर्दे को सुनाते हैं कि रामनाम सत्य है लेकिन अब बेचारा यह सुनकर क्या करेगा और जो सूना भी रहे हैं उनको भी शमशान में क्षणिक सन्यास तो होता है लेकिन जैसे ही मुर्दा फूंककर घर की ओर चले कि फिर असत्य झूठ वैमनस्य ईर्ष्या द्वेष के घेरे में पहुँच जाते हैं /छोटा बच्चा झूठ नही बोलता लेकिन उसके परिवारजन उसको झूठ बोलना सिखाते हैं ,झूठ बोलने की प्रेक्टिस कराते हैं और झूठ न बोलने पर डाँट डपट तक करते हैं लेकिन जब यही झूठ उस बच्चे से लेकर वयस्क हो चुके मनुष्य में पूर्णतः स्थान बना चूका होता है तो अब उसको झूठ का परित्याग करके सत्य को धारण करने की शिक्षा दी जाती है जो कि अब असंभव है / चोरी ,असत्य भाषण और व्यभिचार ये तीन गुण दोष ऐसे हैं कि जो एक बार मन बुद्धि में प्रवेश कर गए तो फिर कितना भी प्रयास करलो ये जाने वाले नही हैं / मातापिता अपने छोटे छोटे नवजात बच्चों को बजाय राम नाम लेने के उसको फ्लाईंग किस मारना सिखाते हैं और घर में किसी अथिति के आने पर अपने बच्चे से फ्लाईंग किस मारकर दिखाने का स्वांग भी करते हैं लेकिन बड़ा होकर जब यही छोटा बच्चा इसी फ्लाईंग किस का सड़क चलते लड़का लड़की पर प्रयोग करता है तो येही मातापिता यह कहते सुने जाते हैं कि इनके मातापिता ने इनको संस्कार नही दिये ? अब सोचने की बात है कि बच्चों को झूठ बोलना सिखाने वाले , उनको चोरी करना सिखाना वाले और फ्लाईंग किस मारना सिखाने वाले मातापिता यदि अपने बच्चों को इन सब बुरी आदतों से दूर रखते तो आज उनको किसी सत्य नारायण कथा कराने या सुनने की जरुरत ही कहाँ पड़ती ? अक्सर लोग कहते सुने जाते हैं कि बच्चे और बूढ़े लगभग एक जैसे ही होते हैं क्या आप इससे सहमत हैं ?कदापि नही सहमत नही हो सकते क्योंकि बचपन में बच्चों को चलना सिखाया जाता है लेकिन बुढ़ापे में चलना जानते हुए भी चल नही पाता और गिर जाता है / बचपन में बच्चा कभी झूठ नही बोलता और बुढ़ापे में सत्य बोला नही जाता क्योंकि सारा जीवन असत्य क्लेश कलह राग द्वेष वैमनस्य में ही गुजार दिया और ये सब गुण अब इतने परिपक्व हो गए कि अब निकल नही सकते / आज बाजार में हर वस्तु नकली भी मिलती है और नकली सामान बनाने वाले इतनी खूबसूरती से नकली सामान बनाते हैं कि आसानी से असली नकली में भेद नही पकड़ा जा सकता लेकिन जिन घरों में ये नकली सामान बन रहे हैं वे क्या विदेशी हैं ?जी नही ! वे सब स्वदेशी और सभ्रांत घरानों से ही होते हैं और जब इन्ही नकली सामान बनाने वालों को खुद कोई नकली सामान खरीदना पड़ जाता है तो ज़माना खराब हो जाता है ,सरकार बेईमान हो जाती है और कलियुग का आधिपत्य हो जाता है / खुद नकली बनाओ तो वह पैसा कमाने का माध्यम है और यही कहा जाता है कि भाई पैसा कमाओ ,धन तो आखिर धन है ,क्या काला और क्या सफ़ेद ? संसार में पैसा कमाना है तो भाई झूठ फरेब कमीशनबाजी यह सब तो करना ही पड़ेगा लेकिन जब स्वयं इसी गोरखधंधे का शिकार बन जाओ तब भाषा इतनी अमर्यादित और असभ्य क्यों हो जाती हैं ? समाज में कोई बाहरी व्यक्ति नही है बल्कि हम सब मिलकर ही समाज बनाते हैं ,जो आशा हम दूसरों से रखते हैं वही दुसरे हम से भी रखते ही होंगे /हम किसी को धोखा दे रहे हैं तो कोई हमें भी ठग रहा होता है /यही क्रम चलता आ रहा है और इस क्रम को तोड़ने का केवल एक ही माध्यम है और वह है अपने नवजात बच्चों को चोरी, झूठ, हिंसा, मांसाहार ,वैमनस्य और ईर्ष्या से हर संभव तरीके से दूर रखने का प्रयास करना / छोटा बच्चा तो स्वाभाविक रूप से ही ईमानदार, सत्यवादी और अहिंसक होता है लेकिन बेईमानी, झूठ और हिंसा के संस्कार उसमे भरे जाते हैं और यही कुसंस्कार परिपक्व होकर मनुष्य को रावण बना देते हैं /अतः सत्य नारायण की कथा भी यही और सत्यनारायण कथा का सार भी यही है कि सत्य बोलना ,सत्य सुनने का धैर्य संयम साहस होना और सत्य को जीवन में शतप्रतिशत धारण करना ही वास्तविक पुरुषार्थ है /
रचना रस्तोगी
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