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रोगी ,रोग और उपचार

bharat
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रोगी ,रोग और उपचार
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लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने क्लिनिकल चिकित्सकों और पैथोलॉजिस्टों और रेडियोलॉजिस्टों के बीच एक गंभीर अपराधिक नेक्सस होने का वक्तव्य दिया है लेकिन यह वे नही बता पाये कि आख़िरकार यह नेक्सस फलफूल क्यों रहा है ? 2004 में इलाहबाद हाईकोर्ट में यूपी में चल रहे अवैध सामानांतर मेडिकल व्यवसाय को रोकने और फर्जी चिकित्सकों को धर पकड़ने के लिए एक याचिका दायर की गयी थी लेकिन 2014 की स्थिति यह है कि शायद ही यूपी की कोई गली मोहल्ला ऐसा होगा जहाँ कोई अवैध अमान्य डिग्रीधारी चिकित्सक मरीजों की जिंदगी से न खेल रहा हो लेकिन इस अवैध अमान्य अमानवीय समानांतर चिकित्सा व्यवसाय को रोकने के बजाय यूपी सरकार ने यूपी के सभी प्रकार के एलोपेथिक चिकित्सकों पर ही एक वार्षिक भारी भरकम लाइसेंस फीस लादने का निर्णय किया है और यह लाइसेंस फीस 2004 से वसूली जाएगी / केंद्रीय स्वास्थय मंत्री स्वयं एक चिकित्सक हैं तो क्या वे यह बता सकते हैं कि क्या कोई मरीज इतना ज्ञानी या ऐसी स्थिति में होता है कि वह चिकित्सक द्वारा सुझाये जांचों के बारे में चिकित्सक से तर्क कुतर्क कर सके ? जबकि स्थिति यह है कि क्लिनिकल चिकित्सकों को स्वयं अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए बड़े बड़े होल्डिगों और अख़बार व टीवी में विज्ञापन देना पड़ता है और यह भी सत्य है कि इन्ही फर्जी अमान्य डिग्रीधारी चिकित्सकों की सहायता से चिकित्सा व्यवसाय जीवित भी है वर्ना कई नर्सिंग होमों में ताले लग जायेंगे /मुम्बई और हरियाणा हाई कोर्ट ने चिकित्सा व्यवसाय को कॉमर्शियल गतिविधि न मानकर उनपर किसी भी प्रकार के कॉमर्शियल बिजली पानी गृहकर सम्पत्तिकर लगाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है लेकिन शायद यूपी सरकार में किसी अन्य देश के नियम लागू होते होंगे तभी प्राइवेट चिकित्सकों का काम करना दुर्भर कर दिया जबकि सरकारी मेडिकल कोलिजों और पीएमएस में काम कर रहे चिकित्सकों को प्राइवेट प्रेक्टिस करना सुलभ बना रखा है /सत्ता पक्ष के चापलूस चिकित्सकों की अपने ही व्यवसाय के प्रति दुर्भावना प्रदेश के सारे एलोपेथिक चिकित्सकों के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है कि पिछले दस वर्षों का इकठ्ठा लाइसेंस शुल्क अदा करने के लिए नोटिस जारी होने वाले हैं / अगर केंद्रीय स्वास्थय मंत्री को क्लिनिकल और इन्वेस्टिगेटिव चिकित्सकों के बीच नेक्सस अपराध नजर आता है तो अन्य विभागों में चल रहे कमीशन नेक्सस क्या संविधान अनुरूप हैं ?डिग्रीधारी चिकित्सक का इससे बड़ा अपमान और क्या होगा कि न्यूनतम पांच वर्ष मेडिकल कॉलिज में व्यतीत करने के बाद उसको एक अमान्य अयोग्य अपात्र और फर्जी डिग्रीधारी व्यक्ति को डाक्टर साहब कहकर सम्बोधित करना पड़ता है यानि कहीं कहीं तो कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी मेडिकल कॉलिज तो छोडो साधारण प्राइमरी स्कूल तक का गेट नही देखा लेकिन प्रतिदिन 300 मरीज देखते हैं / मिर्गी का शर्तिया इलाज करने का दावा ठोकने वाले एक आठवीं पास व्यक्ति , तो कहीं लकड़ी का टाल लगाने वाले अनपढ़ ने तो कहीं सीमेंट बेचने वाले छठी पास व्यक्ति ने अपना डेंटल और मेडिकल कॉलिज खोल रखा है जहाँ बीडीएस एमडीएस एमबीबीएस एमएस एमडी डिग्रियां बेचीं जाती हैं /सरकारी कोलिजों के जाने माने रिटायर्ड टीचर इन्ही मूर्खों के चरण स्पर्श करके अपना बुढ़ापा सुधार रहे हैं / जब प्राइवेट चिकित्सकों को भारी भरकम लाइसेंस शुल्क देना होगा तो क्या यह चिकित्सा व्यवसाय में भ्रष्टाचार को और आगे नही बढ़ाएगा ?सरकारी सिस्टम खुद तो बीमार है जहाँ बीमार बजाय ठीक होने के और बीमार हो जायेगा तथा साथ में तीमारदार भी बीमार हो जायेगा / प्राइवेट चिकित्सा व्यवसाय को खुद सरकार महंगा बना रही है तो ऐसे में बीमार आखिर कहाँ जायेगा ? अगर सरकार प्राइवेट चिकित्सा व्यवसाय को सस्ता बनाने के लिए वास्तव में गंंभीर है तो चिकित्सक के क्लीनिक को कॉमर्शियल गतिविधि न मानकर सामाजिक सेवा कहा जाय और तभी चिकित्सक पर अपनी फीस कम करने और इलाज सस्ता करने का दबाब बनाया जा सकता है /सरकार बार बार यही रोना रोती है कि चिकित्सकों की भारी कमी है लेकिन वास्तव में भारत में चिकित्सक जरुरत से ज्यादा हैं / किसी भी शहर की मुख्य सड़क पर आँख उठाकर देखें तो चिकित्सकों के बड़े बड़े ग्लो साइन बोर्ड दिख जायेंगे / दुर्भाग्यवश या सौभाग्यवश भारत का प्रत्येक चिकित्सक ही स्वयं को कैंसर विशेषज्ञ लिखता है और कहीं कहीं तो मुम्बई के प्रसिद्द टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के लघु नाम टीएमएच को ही अपनी डिग्री बना देता है और विज्ञापनों एवं कमीशन के माध्यम से बाजार में स्वयं को कैंसर विशषज्ञ के रूप में स्थापित कर लेता है / मानवीय व्यवसाय के अमानवीय होने के पीछे सरकारी शोषण प्रमुख कारण है क्योंकि जब चिकित्सक को दुनिया भर के टैक्स अदा करने होंगे तो वह अपनी क्लीनिक में पहले ही मरीज से उन टैक्सों को अदा करने की जुगाड़ में रहेगा और चूंकि सरकारी तंत्र लगभग जंग खा चूका है इसकारण रोगी की प्राइवेट चिकित्सक की सेवा लेना विवशता है / सरकार चाहती तो प्रत्येक सरकारी हॉस्पिटल में सायं कालीन ओपीडी चलाकर गरीबों को स्वास्थय मुहिया करा सकती थी लेकिन इच्छा शक्ति की कमी है /अधिक कर यानि अधिक टैक्सेशन ही आम आदमी को बेईमान बनाते हैं / यूपी सरकार ने भिन्न भिन्न वेराइटी के चिकित्सकों और पैथोलॉजिस्टों रेडियोलॉजिस्टों नर्सिंग होमों पर लाइसेंस फीस लगाई है लेकिन मूर्खता की पराकाष्ठा भी शासनादेश में देखने को मिलेगी क्योंकि एमआरआई सीटीस्केन चलाने वाले रेडियॉलॉजिस्ट पर मात्र दो हजार वार्षिक लाइसेंस शुल्क और डेंटल सर्जन पर दस हजार लाइसेंस शुल्क जबकि जगजाहिर है कि सस्ते से सस्ता एमआरआई या सीटीस्केन पांच हजार रुपये में होता है और इन एक्सरे सेंटरों में नंबर भी दो दिन बाद आता है / एक एमडी फिजिशियन जो दिन में सौ मरीज देखता है उसको वार्षिक लाइसेंस फीस तीन हजार रुपये और एक डेंटल सर्जन जो पूरे दिन में मुश्किल से दो चार मरीज देख पाता है उसपर लाइसेंस फीस दस हजार रुपये वार्षिक लादा गया है / चिकित्सक को कोई सुरक्षा भी सरकार मुहिया नही कराती है क्योंकि अक्सर नर्सिंग होमों और क्लीनिकों में तोड़फोड़ की घटनाएं समाचार पत्रों में छपती हैं /अत्यधिक टैक्सेशन से तंग आकर चिकित्सक भ्रष्टाचार को ही सरल विकल्प बनाएगा और दवाइयों की कम्पनियाँ तथा इन्वेस्टिगेशन सेंटरों से कमीशन लेना उसकी विवशता हो जाएगी/ चिकित्सक की दूकान को कॉमर्शियल मानकर व्यवसायिक बिजली पानी गृहकर वसूलना जब मुम्बई उच्च न्यायलय तक ने अनुचित ठहरा दिया है लेकिन यूपी सरकार को शायद वह निर्णय रास नही आया होगा / चिकित्सक आखिर कौन सा उद्योग चलाता है कि उसको कॉमर्शियल माना जाय ?और केंद्रीय स्वास्थय मंत्री तो स्वयं एक प्राइवेट प्रेक्टिशनर रहे हैं उनको तो व्यवहारिक ज्ञान होना ही चाहिए था कि प्राइवेट प्रेक्टिशनर की क्या क्या समस्याएं हैं और उनको कैसे दूर किया जाय ?रही बात मेडिकल काउंसिल की तो क्या यह बताना अनिवार्य होगा कि काउंसिल मेंबर बनने के लिए सरकारी मेडिकल कोलिजों के टीचर लाखों करोड़ों रूपया खर्च करते हैं तो ऐसा करने से उनको क्या लाभ होना है ?लाभ यही है कि प्राइवेट मेडिकल कोलिजों की वार्षिक अनुमति और मान्यता का खेल करोड़ों नही बल्कि अरबों में है और यही हाल डेंटल कौंसिल का भी है /पिछले वर्ष कई न्यूज चैनलों ने एमबीबीएस एमडी एमडीएस बीडीएस सीटों की नीलामी का पर्दाफाश किया था और पूरे नेक्सस का खुलासा भी हुआ था /पूर्व एमसीआई अध्यक्ष केतन देसाई और पूर्व डीसीआई अध्यक्ष अनिल कोहली सीबीआई के रडार में थे लेकिन अंततः जांच परिणाम यही निकला कि ये दोनों महानुभाव ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के जीते जागते मानक एवं प्रमाण है जबकि मेडिकल और डेंटल कोलिजों की अनुमति मान्यता और सीटों का बंटवारा खुदरा रेट पर होता रहा ?अगर पिछले दस वर्षों के प्राइवेट मेडिकल और डेंटल कोलिजों की संस्तुति और मान्यता की सत्यता और निष्पक्षता से बारीक जांच हो तो इसके भ्रष्टाचार का आयाम टूजी कोयले घोटाले से भी बड़ा निकलेगा ?प्राइवेट मेडिकल और डेंटल कॉलिज चलाने वाले संस्थानों के स्वामी तो अरब पति होते गए लेकिन बेचारा मरीज पिस्ता रहा ?दिल्ली के बड़े बड़े हॉस्पिटलों में दलालों के माध्यम से इलाज होता है लेकिन वह नातो श्रीमान अन्ना हजारे को दिखा और नाहीं केजरीवाल साहब को / वर्तमान केंद्रीय सरकार तो ईमानदारी के नाम पर ही सत्ता में आई है लेकिन स्थिति जस की तस / यूपी के सरकारी मेडिकल कोलिजों में प्राइवेट नर्सिंग होमों की एम्बुलेंस खड़ी होना आम बात है और सरकारी मेडिकल कोलिजों से मरीज प्राइवेट इलाज में ट्रांसफर इसीलिए किये जाते हैं कि प्राइवेट हॉस्पिटलों का खर्च भी न निकलेगा और यह नेक्सस केंद्रीय मंत्री जी नही देख पाये ?अगर यूपी सरकार वास्तव में यूपीवासियों के इलाज को सस्ता बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है तो प्राइवेट चिकित्सकों पर लादी लाइसेंस फीस बंद करे और चिकित्सको की क्लीनिकों को कॉमर्शियल न मानकर समाज सेवा का नाम दे और उसके बाद हर प्राइवेट चिकित्सक की परामर्श फीस और नर्सिंग होम विजिट फीस का न्यूनतम और अधिकतम स्तर तय करे क्योंकि जिले स्तर के प्राइवेट सामान्य फिजिशियन पांच सौ रूपया और सुपर स्पेशलिस्ट हजार रूपया परामर्श फीस लेते हैं और नर्सिंग होम विजिट का तो खैर कोई हिसाब किताब ही नही जो चिकित्सक के अधरों से निकल गयी बस वही फीस है / अगर सरकार चिकित्सकयी व्यवसाय को कॉमर्शियल न मानकर समाज सेवा अनिवार्य बना देती है तो यहीं एक्सरे सौ रुपये और एमआरआई सीटीस्केन दो दो हजार रुपये में हो सकते हैं / सरकार कितने ही सरकारी मेडिकल कॉलिज खोल ले लेकिन चिकित्सा व्यवसाय का नभ्भे प्रतिशत हिस्सा प्राइवेट सेक्टर के ही हवाले है क्योंकि सरकारी डाक्टर दोपहर के बारह बजते ही उदासीन हो जाते हैं और बिमारी इतनी बेबफा होती है कि समय देखकर आती नही ऐसे में प्राइवेट चिकित्सक ही एक मात्र विकल्प है और ऐसे में जितनी फीस चिकित्सक चाहेगा वह देना मरीज और तीमारदार की विवशता है / मात्र नेक्सस कह देना या प्राइवेट चिकित्सक को लालची कह देना सरकार का मुँह छुपाने का जबाब हो सकता है लेकिन मरीज के पास तो अन्य कोई विकल्प है ही नही / एम्स अस्तपताल सरकार खोलना चाह रही है तो वहां भी इलाज इसी सिस्टम से तो होगा या वहां भगवान धन्वन्तरि साक्षात अवतरित हो जायेंगे /समय की आवश्यकता यही है कि जैसे सरकार मांस निर्यात पर सब्सिडी देती है और मांस उत्पादक को आयकर मुक्त बनाती है ठीक उसी प्रकार सरकार प्राइवेट चिकित्सक को भी सब्सिडी दे या उसकी आय करमुक्त बनाये या उसको दुकान खोलने पर ब्याजमुक्त धन उपलब्ध कराये तो यह मानवीय व्यवसाय अमानवीय बनने से रोका जा सकता है /चिकित्सक को टैक्स मुक्त करके सरकार प्राइवेट चिकित्सक से इलाज सस्ता करने और इलाज की अधिकतम राशि तय करने का दबाब बना सकती है /अन्यथा रोगी रोग से इतना भय नही खाता जितना कि रोग के इलाज में होने वाले व्यय से भय खाता है /
रचना रस्तोगी

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