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धार्मिक दहेज़ क्या अभिशाप नही ?

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धार्मिक दहेज़ क्या अभिशाप नही ?
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प्रत्येक धर्म और समाज के लोगों में शादी विवाहों में नगद धन राशि,कारें एवं अन्य घरेलु उपयोगी वस्तुएं विवाह कर या शादी टेक्स या सम्बन्धी टेक्स के रूप में वसूलना और देना अर्थात सामाजिक दहेज़ लेना देना एक तरीके से इस पवित्र संस्कार का अभिन्न अंग बन चूका है वहीँ दूसरी ओर सरकारी विभागों में घूस या रिश्वत प्रथा को भी सरकारी दहेज़ कहना अतिशयोक्ति न होगा / भले ही वरपक्ष और वधुपक्ष दहेज़ लेने और दहेज़ देने का बाहरी विरोध प्रदर्शन करते दिखें लेकिन विवाह उपरांत रिसेप्शन का आयोजन का मुख्य ध्येय तो विवाह कर या सम्बन्धी बनने का टेक्स चुकाना ही है और यदि विवाह कहीं दुसरे शहर में जाकर करना पड़ जाय तो दूसरे शहर जाने वाला पक्ष अपने मूल शहर में अपने घर या किसी सामूहिक भवन में साईं संध्या या भजन संध्या का आयोजन करके यह टेक्स वसूलना चाहता है क्योंकि जिन जिन परिवारों या सगे सम्बन्धियों के यहाँ जाकर उसने यह टेक्स भरा है,उनसे वापिस वसूली का कोई भी अवसर वह भूलना या छोड़ना नही चाहता /संपन्न हिन्दू परिवारों में विवाह संस्कार भले ही आर्यसमाज पद्धति से संपन्न हो लेकिन दहेज़ लेना परंपरा बनी हुई है लेकिन दहेज़ देते समय स्वामी दयानंद सरस्वती अवश्य याद आते हैं / यही हाल सारे ही सरकारी विभागों का है जहाँ स्पष्ट शब्दों में लिखा होता है कि रिश्वत देना लेना मना है और जब कोई आगुन्तक सरकारी विभागों में अपने कार्य कराने के लिए किसी भी क्लर्क या अफसर या अबतो मंत्रीजी से भी मिलता है तो कार्य संपन्न करने हेतु बाकयदा उसको रेट लिस्ट दिखा दी जाती है और जब पीड़ित पक्ष उस क्लर्क अफसर या मंत्री को एक अनशनी बाबा यानि सेना से रिटायर्ड ट्रक ड्राईवर चौथी कक्षा पास भ्रष्टाचार भगाओ आंदोलनकारी का नाम सुनाता है तो सरकारी कर्मचारी की भोएं तन जाती है और पहले तो कर्मचारी एक सूचना पट्टी दिखाता है जिसपर लिखा होता है कि “रिश्वत दे ! नालेना पाप है ” और जैसे ही पीड़ित धमकी देता है कि वह सीबीआई सीवीसी लोकपाल से शिकायत करेगा तो सरकारी कर्मचारी तुरंत एक दूसरी पट्टी दिखाता है जिसपर लिखा होता है कि “रिश्वत देना लेना पाप है ” /यानि देना शब्द का संधि विच्छेद करते ही शब्द का अर्थ बदल जाता है दोनों वाक्यों की सूचना पट्टी हर समय तैयार रहती है और पीड़ित की इस सरकारी दहेज़ को देना विवशता है और यही विवशता सरकारी कर्मचारी की भी है क्योंकि वह इस भ्रष्ट सिस्टम का सबसे छोटी इकाई है और जिसका दूसरा हिस्सा ऊपर वाला है और यह ऊपरवाला कौन है आजतक इस रहस्य से पर्दा नही हटा क्योंकि बस यही एक जुमला सुनने को मिलता है कि कमाई का हिस्सा ऊपर तक जाता है /अगर पीड़ित यानि कस्टमर यानि उपभोगता कुछ ज्यादा ही स्मार्ट हुआ तो कर्मचारी बोलता है कि जिस अनशनकारी बाबा का नाम सुना रहे हो क्या कभी उसी से ही पूछा है कि वह वैसे तो अपने को फ़कीर बताता है लेकिन घूमता हवाई जहाजों ,लक्जरी एयरकंडीशंड कारों में है और वह फकीर गरीब आम आदमी अपना इलाज मेदांता जैसे महंगे फाइव स्टार हॉस्पिटलों में कराता है /भाई साहब भले ही कर्मचारी सरकारी हूँ और रिश्वत और वेतन दोनों वसूलता हूँ लेकिन कपडे दो दिन चलाता हूँ लेकिन अनशनकारी बाबा तो सफ़ेद कलफ़ लगे कपडे पहनता है जबकि सफ़ेद कपड़ों की मेंटिनेंस सबसे महंगी पड़ती है तो क्या कभी उस ईमानदारी के अवतार श्रीमान से यह पूछा कि भाई इन सबका खर्च कौन वहन करता है ?अब उपभोगता को तुरंत समझ में आ जाता है कि कष्ट से मरने वाले को ही कस्टमर क्यों कहते हैं ?अभी तक सामाजिक और सरकारी दहेज़ की बात हुई लेकिन अब हिन्दू समाज में एक धार्मिक दहेज़ भी व्यापक व्याप्त रहा है जिसकी चर्चा करना अब अनिवार्य हो गया है क्योंकि पिछले कुछ महीनों से एक जाने माने पश्चिमी भारत के चर्चित भगवत स्वामी जी और उनके सुपत्र भी जेल के अथिति बने हुए हैं और उनके पास अरबों का खजाना है और हाल में ही पंजाब के एक ऐसे ही स्वामीजी मृत होते हुए भी समाधिमग्न बताये जा रहे हैं और तीन वर्षों पहले दक्षिण भारत के भी स्वयंभू भगवान् अपनी अथाह संपत्ति छोड़कर शिष्यों को अदालतों के चक्कर काटने को विवश कर गए / मथुरा के भी एक स्वामीजी दिवंगत होने के बाद अरबों की संपत्ति का विवाद अदालतों के सिरमत्थे कर गए ?और कुछ ही दिन पहले प्रतापगढ़ के भी एक स्वामीजी अरबों का खजाना और अरबों के मंदिर अपनी संतानों के हवाले कर गए यानि उनकी संतान को बिना कमाए ही तमाम जिंदगी मौज मस्ती करनी है /राजस्थान के एक स्वामीजी का भी अरबों रुपियों से निर्मित आध्यात्मिक राजनीतिक आश्रम है जहाँ कांग्रेस पार्टी का एक तरीके से अघोषित अड्डा ही है और वे स्वामीजी अब राजनीति के क्षेत्र में भी किस्मत आजमायेंगे क्योंकि उनको अब एक मुस्लिम धर्मगुरु का भी समर्थन मोदीजी को रोकने के लिए मिल चूका है /और भी बहुत से स्वामियों बाबाओं धर्मगुरुओं का अरबों खरबों का साम्राज्य है जो नातो कुछ वस्तु बेचते हैं नाहीं इनका कोई कल कारखाना है और नाहीं इनके पास कोई पैतृक समाप्ति थी यानि मात्र कुछ वर्षों के अथक प्रयास और मेहनत से ही गरीब परिवारों में जन्मे ये महानुभाव देखते ही देखते अरबपति खरबपति ही नही बने बल्कि भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को भी प्रभावित करने में समर्थ हो गए /प्रश्न यही है कि इन्होने ऐसे क्या कारोबार किया जिससे इनपर लक्ष्मी और नारायण दोनों की ही कृपा बरसने लगी /जी हाँ आज यह प्रश्न उठाना और सुप्त समाज को जाग्रत करना भी राष्ट्रहित एवं राष्ट्रधर्म है कि इनकी आय का स्त्रोत क्या है ?आखिर आख़िरकार ये ऐसा क्या करते हैं कि ये इतने प्रतिभावान प्रभावशाली हो गये कि इनके चरणों में समाज के बुद्धिजीवी,राजनीतिज्ञ,वैज्ञानिक और जज तक शीश नवांकर अपना भाग्य उज्जवल बनाते हैं ?इनका प्रमुख कार्य है कि ये भगवान् का नाम और उनकी कथा की मार्केटिंग करते हैं या स्पष्ट शब्दों में भगवान् को बेचते हैं और इस व्यापार की आय आयकर मुक्त है क्योंकि भगवान् की बिक्री को ये दान बताते हैं यानि जो मूल्य इनके भक्त चुकाते हैं वह दान कहा जाता है /अब दान लेना और देना देना इनदोनों लेने देने वालों की श्रद्धा निष्ठा विश्वास का विषय है जिसका नातो कोई साक्ष्य है और नाहीं कोई प्रमाण ही प्रस्तुत किया जा सकता है इसको अंधभक्ति या अंधश्रद्धा कह सकते हैं लेकिन दुःख तब होता है जब पढ़ा लिखा समाज भी इन मार्केटिंग गुरुओं का शिकार बन जाता है / कारण यही है कि हर मनुष्य को अपना भाग्य जानने और बिना मेहनत ही धनवान बनने की एक गुप्त अभिलाषा या इच्छा होती है जिसको ये मार्केटिंग गुरु भली भांति जानते हैं क्योंकि ये लोग अच्छे वक्ता होते हैं /शिष्य यही समझते हैं कि बाबाजी का दिया विभूत प्रसाद ताबीज या नामदान उनकी किस्मत के बंद दरवाजे खोल देगा और यही उनके मानसिक आर्थिक शारीरिक सामाजिक शोषण का कारण बन जाता है / दुर्लभ दिव्य सत्संग या भागवत सप्ताह या गीता ज्ञान समारोह आदि का नाम देकर लाखों रुपियों से सजा धजा एक भव्य धार्मिक ट्रेड फेयर का आयोजन होता है जिसमे बाबाजी की फोटो,बाबाजी का साहित्य ,बाबाजी का प्रवचन संग्रह ,ऑडियो वीडियों सीडी का एक बण्डल शिष्य को खरीदना अनिवार्य है तो अब इस मजबूरी का धार्मिक दहेज़ कहना क्या गलत है ? अब स्वामीजी भक्तों को भगवान् का एक नाम संस्कृत भाषा ने उच्चारण करने को कहेंगे और भविष्य में इसी नाम के 108 दानों वाली माला से कई माला फेरने का आदेश देंगे ?कभी विचारकर देखिये कि भगवान् को क्या संस्कृत के ही नाम से पुकारना अनिवार्य है ?अगर हिंदी उर्दू या अन्य किसी भाषा में ही यह कह दिया जाय कि रामजी आपको नमस्कार है या कृष्ण जी या शंकरजी आपको नमस्कार है तो क्या भगवान् नमस्कार लेने से मना कर देंगे ?या भगवान् ने कोई अपनी एजेंसी खोली हुई है जहाँ जाकर ही भगवान् का नाम लेने की ट्रेनिंग लेनी अनिवार्य है ?क्योंकि आजकल साधना शिविरों का भी प्रचलन जोरों पर है ?लोगों की मूर्खता ही इन धार्मिक ट्रेड फेयरों को बढ़ावा दे रही है अगर किसी नामी गिरामी भगवत व्यापारी के भागवत ट्रेड फेयर की भव्यता देखें तो आँखे खुली की खुली रह जाएँगी /इन रंगबिरंगी पोशाकधारियों का मंदिर या आश्रम या मठ या न्यास निर्माण के पीछे नंबर दो के धन का नंबर एक में धन परिवर्तन का भी धंधा इसी धार्मिक दहेज़ की उपलब्धि है / हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि को बनस्पतिविहीन करके ईंट गारे सीमेंट संगमरमर की ईमारत खड़ी करके उसको मंदिर का नाम देकर उसमे स्वर्ण धातु की एक मूर्ति रख दी जाती है और उस मूर्ति की सुरक्षा हेतु सिक्योरिटी गार्ड भी रखे जाते हैं यानि जो भगवान् पूरे विश्व की सुरक्षा करता है उसकी सुरक्षा कुछ गार्डों के हवाले है / अगर इस उपजाऊ भूमि पर आम अमरुद या अन्य किसी भी फल के बाग़ या खेती हेतु अनाज उगा दिए जाते जिनसे न केवल पर्यावरण सुरक्षा ही होती अपितु पक्षियों के भोजन व् निवास की समस्या भी सुलझती और पशुओं को भी आहार मिल जाता लेकिन बाबाजी को आमदनी कैसे होती ?बाग़ या खेती करने से क्या भगवान् अप्रसन्न हो जाते ? इन धार्मिक ट्रेड फेयरों से आखिर मानवजाति को क्या प्राप्त होता है और इन मंदिरों में बहुत सी अपराधिक गतिविधियां भी चलने के समाचार अक्सर मीडिया बताता है जिसको कुछ संगठन हिन्दू धर्म पर आक्रमण बताते हैं /अगर इन धार्मिक ट्रेड फेयरों में बाबाजी का भाषण सुनें देखें तो बाबाजी के फ़िल्मी गीतों पर आधारित संगीतमय भजनावली पर नारियों को नृत्य करते ही पाएंगे और स्त्रियों के लिए जहाँ उसका पति ही भगवान् का स्वरुप बताया जाता है और जहाँ विवाहित हिन्दू नारि को केवल पति के ही चरणास्पर्श का आदेश है लेकिन वह बाबाजी के चरणों में लोट लगाती देखी जाती हैं / बहुत से प्राचीन मंदिर खंडहर बनते जा रहे हैं तो क्या बाबाजी उन प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार नही करा सकते ?क्या पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार नए मंदिर निर्माण का विकल्प नही हो सकता ? बहुत से धार्मिक चेनलों पर हर समय किसी न किसी बाबाजी का प्रवचन चलता रहता है लेकिन एक भी बाबाजी ने जनता का राष्ट्र के प्रति कर्तव्यबोध नही कराया ?और हर बाबाजी का विदेश भ्रमण क्या किसी से छुपा है और विदेशो में जाकर भी मंदिर निर्माण और वहाँ भी अपराध करके ये बाबाजी भारत का नाम बदनाम ही करते हैं / जनता के दिए चंदे या दान या धार्मिक दहेज़ से ही हिन्दू धर्म की आड़ में अधर्म का पाप फलफूल रहा है और मनुष्य को भगवान् ने बुद्धि विवेक दिया है लेकिन धर्म के ठेकेदारों के आगे बुद्धि विवेक को ऐसा ग्रहण लगता है कि शिष्यों के दिए दहेज़ से बाबाओं के यहाँ रोज दीवाली बनती है और शिष्यों का दिवाला निकलता है ?भारत सरकार को भी बाबाओं के रजिस्ट्रेशन का एक कानून बनाना चाहिए जहाँ इन बाबाओं की शैक्षिक योग्यताओं के साथ साथ इनके परिवार का भी पूरा विवरण सरकारी वेब साईट पर उपलब्ध होना ही चाहिए क्योंकि कुछ अपराधी भी भगवा चोला पहनकर बाबागिरी से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं / कोई 108 ,1008, कोई 10008 ,कोई जगदगुरू,कोई गीता मर्मज्ञ कोई भागवत सम्राट तो कोई ठाकुरजी बना बाबा कभी कभी पांचवीं छठी पास ही निकलता है ? और जनता से धर्म के नाम पर उगाही ही इनका प्राथमिक कर्त्तव्य रहता है और इस उगाही को धार्मिक दहेज़ कहना ही उचित शब्द होगा / क्या इस धार्मिक दहेज़ पर प्रतिबन्ध या नियंत्रण नहीं लगना चाहिए और अगर हाँ तो फिर विलम्ब क्यों ?
रचना रस्तोगी
189 /9
वेस्टर्न कचहरी रोड
मेरठ ,यूपी

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