Menu
blogid : 4811 postid : 678096

भारत को अस्थिर करने वाला मीडिया मेनेजर कौन है

bharat
bharat
  • 178 Posts
  • 240 Comments

भारत को अस्थिर करने वाला मीडिया मेनेजर कौन है
——————————————————————
यह कहना कतई अतिशयोक्ति न होगा कि आजकल राजनीति एक पेशेवर व्यवसाय का स्वरुप ले चुकी है/अक्सर बाजार में घूमते समय आपको कई दुकानों के यह घोषणा करते हुए साइन बोर्ड दिख जायेंगे कि यहाँ पर असली सामान मिलता है या सामान की गारंटी या फिर असली सामान मिलने का एक मात्र स्थान /बाजार में बैठा हुआ हर व्यापारी सामान की गुणवत्ता की परख के लिए बार बार कभी ईश्वर के नाम की तो कभी अपनी बीबी बच्चों के नाम की कसम खाते दिख जाएगा और तो और दुकानों के नाम पर भी भगवान् के नाम पर रखकर मिलावटी सामान बेचता है या फिर ऐसे नाम रखेगा कि चलता फिरता आम आदमी आकर्षित हो जाय और अपनी दुकानदारी या व्यापार बढ़ाने के लिए अपने सजातीय पेशेवर व्यवसायियों की बुराई करने से भी नही चूकता और अपना सारा सामान सबसे सस्ता और सबसे बढ़िया बेचने का दावा तो करता ही है लेकिन साथ में एक घोषणा और करता है कि मिलावटी पकड़वाने वाले को एक हजार रूपया इनाम /कहने का तात्पर्य यही है मीडिया मार्केटिंग या मीडिया मेनेजमेंट से व्यवसायी अपना कारोबार बढ़ाता है /अगर कोई होशियार उपभोगता यह प्रश्न करे कि आप सस्ता सामान क्यों बेच रहे हैं तो मीडिया के बनाये ये दुकानदार तुरंत कहेंगे कि भाई साहब ये टाटा अम्बानी बिरला तो घटिया माल महंगे दामों में बेच रहे हैं लेकिन हम तो आम आदमी के दर्द को समझते हैं इसलिए हम घाटा सहकर भी आम आदमी को सस्ता माल बेचने के लिए जन जागरण अभियान करने को बाजार में उतरे हैं हम कोई व्यापारी नही लेकिन आम आदमी को परेशान देखकर जनकल्याण हेतु अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़कर देखो आये हैं /एक बार हमपर विश्वास तो करो हमारा सामान खरीदने के लिए एक ग्राहक श्रंखला भी बनाओ जैसे एमवे आदि ने किया हुआ है और फिर देखो कि हम टाटा बिरला अम्बानी को भी अच्छा माल मुफ्त में बेचने को मजबूर कर देंगे यातो वे अपनी दुकान बंद करदेंगे या फिर हमसे समझौता करेंगे / हर शहर में मीडिया मेनेजमेंट से कई साधारण डाक्टर कैंसर या लकवा या मिर्गी विशेषज्ञ बनकर जनता का भगवान् से मिलन कराते ही रहते हैं,कहने को जरुर जिम्मेदारी जिलाधिकारियों की होती है लेकिन मीडिया मेनेजमेंट के आगे बेचारे गरीब की बात दब जाती है /गली मोहल्ले में बैठे जर्राह भी किसी डिग्रीधारी सर्जन को चेलेंज करने से नही चूकते और सर्जन से अच्छा आपरेशन करने का दावा भी करते हैं /नेत्र केम्पों के किस्से अक्सर प्रिंट मीडिया बताता है कि सस्ते अच्छे टिकाऊ लेंस होने के दावे के विज्ञापन में आकर कई बेचारे अपनी आँख गँवा बैठे हैं और कई बार ऐसे केम्पों में मोतिया बिंद का आपरेशन मरीज को यमराज का मेहमान भी बना बैठता है / लेकिन जब बात सरकारी अदालतों तक पहुँचती है तो जज साहब यही कहते हैं कि पहले जांचना चाहिए था कि डाक्टर डिग्रीधारी था या अनपढ़ लेकिन अब मरीज बेचारे अख़बार की विज्ञापन कटिंग ही दिखाते रह जाते हैं लेकिन फर्जी आदमी तो तबतक कई लाख रुपये कमा चूका होता है /कुछ इसी ही तरह का प्रयोग भारत की राजनीति में पिछले दो वर्ष से भी चल रहा है जहाँ पहले एक बूढ़े को भ्रष्टाचार से लड़ने को तैयार किया गया और बेचारे की जान जाते जाते बची लेकिन उद्देश्य तो बूढ़े के अनशन की आड़ में असल मुद्दे को परिपक्व करना था कि भले ही बूढ़ा मरे या जिन्दा बचे अपनी अराजकता असभ्यता को एक राजनीतिक स्वरुप देना था /प्रिंट मीडिया में अग्रणी दैनिकों में छोटा सा विज्ञापन दस वर्ग सेंटीमीटर का भी विज्ञापनदाता को कई हजार रूपया का पड़ता है और प्रिंट मीडिया एक चेतावनी भी लिख देता है कि किसी भी उत्पाद या विज्ञापन की सच्चाई से उसका कोई वास्ता नही है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जो एक छोटे से मात्र एक मिनट के विज्ञापन के लाखों रूपया लेता हो वह अपनी जिम्मेदारी से अपना पिंड नही छुटा पाता क्योंकि हर शाम को कुछ राजनेतिक पहलवान जुबानी अखाड़े में अपनी जुबानी ताकत का प्रदर्शन जो करते हैं जिनमे टीवी एंकर की बकवास सबसे अधिक होती है और जहाँ एक कॉमर्शियल ब्रेक के लिए महत्पूर्ण बहस को एक मिनट को रोका जा सकता है तो भला कुछ करोड़ों रुपियों की खातिर किसी भी असभ्य अराजक आदमी को एक राजनेतिक विकल्प के रूप में स्थापित क्यों नही किया जा सकता ?इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जब चाहे किसी को सेक्युलर बना दे और जब चाहे कम्युनल बनादे /बेचारा अमिताभ बच्चन गुजरात में एक रात गुजारने को विज्ञापन करता है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को मुज्जफरनगर के राहत केम्पों में रात गुजारनी अच्छी लगती है लेकिन मंशा दंगा पीड़ितों की मदद करना नही बल्कि ब्लेकमेलिंग की नीयत से क्योंकि यदि किसी की मदद करनी होती तो साथ में कम्बल बिस्तर दूध चाय आटा दाल लेकर जाते लेकिन नही क्योंकि सरकार की फजीहत के एवज में रकम जो वसूलना था ? कुछ राष्ट्र विरोधी शक्तियां इसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तंत्र के सहारे कुछ असभ्य अराजक तत्वों को एक राजनीतिक विकल्प के लिए तैयार कर रही है ताकि भारत की अर्थव्यवस्था और राजनेतिक व्यवस्था को लोकतान्त्रिक तरीके से कैसे ध्वस्त किया जा सके ?बढ़ती जनसंख्या और घटते रोजगार के कारण भूखा पेट राष्ट्र विरोधी शक्तियां का शिकार बन ही जाता है। कोई भी भारतीय अपनी माता के गर्भ से इन्डियन मुज्जहिद्दीन का कार्यकर्ता बनकर पैदा नही होता बल्कि भूख बेरोजगारी बिमारी तड़प शिक्षा की बेकद्री उसको देशद्रोही बनाती है और ऊपर से धर्म पर संकट बताकर उनको अपराध की दुनिया में धकेला जाता है /अगर पुराने समय की बात करें तो पहले कोई भी सभ्य परिवार की लड़किया फिल्मों में काम नही करती थीं लेकिन समय बदला और अब अच्छे अच्छे परिवारों की कभी अर्धनग्न तो कभी पूर्ण नग्न होकर फ़िल्मी पर्दों पर नाचती दिखती हैं यही हाल भारत की राजनीति का भी है /ईमानदारी का कोई भी लाख दावा करता फिरे लेकिन सत्य यही है कि साधारण सा नगर निगम पार्षद का चुनाव भी कई लाख रुपये में होता है और विधायकी में करोड़ों रुपियों की भेंट चढ़ती है और सांसदी में क्या कहने ? एक सांसद ने बताया था कि राज्यसभा का सदस्य बनने में ही अस्सी करोड़ रूपया देने पड़े थे तो भला ऐसे माहोल में जहाँ एक शरीफ ईमानदार आम आदमी तो बेचारा अपने मोहल्ले तक की समिति का चुनाव भी नही लड़ पाता लेकिन वहीँ यह आम आदमी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माईक से देश की राजनीतिक व्यवस्था बदलने का शंखनाद करे तो देश की गुप्तचर एजेंसियों के कान तुरंत खड़े हो जाने चाहिये थे आखिर इसका स्पॉन्सर यानि पूरे ड्रामे का प्रायोजक कौन है ?जिस जयप्रकाश या लोहिया को लोग याद करते हैं ,आज के लालू यादव ,नीतीश कुमार ,मुलायम सिंह ,शरद यादव ,रामविलास पासवान उन्ही महापुरुषों के आंदोलनों का प्रसाद हैं और जब एक बार फिर एक बूढ़े के अनशन की मीडिया मार्केटिंग हुई है तो देश को असभ्य अराजक राजनीतिक पार्टी का भी दंश झेलने को तैयार रहना होगा और यदि देश को बचाना है तो इस पूरे ड्रामे के मीडिया मेनेजर को बेनकाब करना ही होगा क्योंकि पहले बारह दिनों की अवतरनत नॉनस्टॉप कवरेज और अब कुछ दिनों से फिर चौबीसों घंटों की नॉनस्टॉप कवरेज कहीं न कहीं किसी देश विरोधी षड्यंत्र का स्पष्ट संकेत दे रही है क्योंकि कोई तो अवश्य इसके पीछे है जो देश की लोकतान्त्रिक और आर्थिक सामाजिक प्रशासनिक व्यवस्था को ध्वस्त करने पर आमादा है /एसएमएस का प्रयोग यदि धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए या किसी धर्म पर संकट की घोषणा करने के लिए या फिर किसी धार्मिक ढांचे बनाने गिराने के लिए होने लगा तो देश में गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी अतः देश के लोकतंत्र के प्रहरियों और बुद्धिजीवियों को एक सुर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अब सेंसर करने की आवाज उठानी चाहिए वरना कुछ ही दिनों बाद भारतीय संसद एक असभ्यों अराजक तत्वों का शरणगाह बनकर रह जायेगा /
रचना रस्तोगी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh