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दीपक का दर्द
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दीपक के प्रकाश को सब देखते हैं लेकिन दीपक का दर्द कोई नही जानता /दीपक जलता है तो उसका दिल जलता है लेकिन लोग दिवाली मनाते हैं और दीपक जलकर रख हो जाता है तो लोग उसको कूड़े में फेंक देते हैं और भूल जाते हैं और नया दीपक उसका स्थान ले लेता है/अनादि काल से यही होता आया है।संत लोग अच्छे लोग समाज में आते हैं अपना बलिदान देकर समाज के लिए कुछ नया अच्छा करके चले जाते हैं समाज उनकी उपलब्धियों से फायेदा उठाता है और उन संतों या महापुरुषों के शरीर शांत होने के बाद उनको भूल जाते हैं/भारत एक आध्यात्मिक देश है जहाँ भगवान् के अवतारों का वर्णन घर घर में है,घर घर में चमत्कारों की चर्चा होती है यहाँ तक कि नदियों पर्वतों वृक्षों पशुओं पक्षियों को भी भगवान् मानकर पूजा होती है और इसी भारत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वृक्षों पशुओं पक्षियों की ह्त्या ही नही करते बल्कि उनको खा भी जाते हैं,नदियों में मलमूत्र प्रवाहित करते हैं और पर्वतों को वृक्ष विहीन बनाने पर तुले हैं/ तर्क यह दिया जाता है कि अगर पशु पक्षियों को मारकर खाया न गया तो धरती पर पशु पक्षी ही रह जायेंगे और मनुष्य फिर कहाँ रहेंगे यही कारण है कि आज भारत में जनसँख्या एक सौ पचास करोड़ के लगभग है जिसमे बहुतायत भाग मांसाहारियों का ही है / मातापिता को जहाँ भगवान् का दर्जा प्राप्त है वहीँ उस देश के कोर्ट को यह आदेश भी पारित करना पडा कि जो भी पुत्र अपने बूढ़े मातापिता की देखभाल नही करेगा उसको दण्डित किया जाएगा /
भारत एक स्वाभिमानी देश भी रहा है लेकिन भारत के स्वाभिमान को भारत के ही लोग ग्रहण लगाने पर आमादा हैं और भारतीय मीडिया उनको नेताजी की संज्ञा देता है/नेता और राजनेता में अंतर होता है/नेता समाज से निकलकर आता है उसको समाज के लोगों के दुःख दर्द का अहसास होता है और लोगों के दुःख दर्द को दूर करने के लिए ठीक उसी तरह संघर्ष रत रहता है जैसे दीपक /दीपक तभी तक जलता है जब तक उसमे तेल है ठीक उसी प्रकार नेता तब तक संघर्ष करता है जब तक उसमे प्राण हैं/ राजनेता एक परिवार से निकलकर आता है जो पैदा होते ही चांदी के बर्तन में दूध पीता है और आजीवन चांदी के बर्तन में ही खाना खाता है और अपने घर की चांदी बचाए रखने और नयी चांदी जोड़ने के लिए राजनीति करता है /उसकी राजनीति को पोषित करने और चमकाने वाले वाले कोई और नही बल्कि समाज के ही कुछ अवसरवादी लोग और लाची प्रसार प्रचार माध्यम जिम्मेदार है/मोहन दास गाँधी को भी हीरो बनाने वाला और कोई नही बल्कि तत्कालीन मीडिया ही था क्योंकि तत्कालीन वास्तविकता बताने वाला अब कोई जिन्दा ही नही बचा है /जो लोग पहले गाँधी को राष्ट्रपिता कहते थे थे वेही आज आरटीआई एक्ट से सूचना मांगने पर गाँधी को राष्ट्रपिता मानने से इनकार कर रहे हैं,अगर जनता अभी भी ऐसे लोगों को नेता माने तो देश का स्वाभिमान कितने दिन तक सुरक्षित रह सकता है यानी गाँधी को प्रयोग किया गया और शायद लोगों को यह भी पता न हो कि जिस दिन नेहरु को भारत की सत्ता का हस्तांतरण हुआ था उस दिन आजादी का महानायक कहे जाने वाला गाँधी दिल्ली में ही नही था /साबरमती का संत के कमाल का अब क्या हुआ ?यह प्रश्न लोगों के मन में उठता तो होगा ही /शायद गाँधी का दीपक बुझने लगा था,उसको भूलना पड़ा /यह अब विषय स्वतंत्रता संग्राम और उसकी विवेचना का नही है लेकिन प्रश्न यही है कि आखिर उस समय दीपक था कौन ?कहावत है कि दिया तले अँधेरा ?उस दीपक की भी शायद यही नियति थी जो जला और लोगों को स्वंत्रतता में जीना सिखाया और फिर बुझ गया /क्यों सुभाष चन्द्र बोस ने गुमनामी का जीवन बिताया ?शायद कारण अँधेरा जिसका जिक्र अभी किया कि दिया तले अँधेरा और हर वर्ष संसद भवन और राष्ट्रपति भवन पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को दुल्हन की तरह सजाये जाते हैं/
गंभीरता की बात है कि समाज की आज दिशा और दशा क्या है और कौन इसका जिम्मेदार है ?एक पञ्च सितारा होटल में बैठकर भाषण तय करने वाला या बिसलेरी का पानी पीने वाला या आलिशान बिल्डिंग में रहने वाला या झूठे शपथपत्र प्रस्तुत करके सांसद विधायक बनने वाला या दस बीस फेक्टरियों का मालिक या किसी पूर्व राजनेता के वंशज होने का करने वाला भारत का भाग्य विधाता बनेगा?क्या यह नेता है या राजनेता है जो जानता ही नही कि भूख प्यास बिमारी भय या शिक्षा या नौकरी पाने का दर्द क्या है जिसने कभी अभाव देखा ही न हो उसको नेता कहना क्या उचित होगा?और ऐसा व्यक्ति अपने को दीपक कहे तो क्या यह दीपक का अपमान नही है?जिसके चारों तरफ अंग रक्षकों की फ़ौज रहती हो जिसको अपने ही देशवासियों से ख़तरा महसूस होता हो वह भला क्या देश का कर्णधार बनेगा जो खुद दूसरों के कंधे पर चलता हो वह भला खुद किसका कन्धा बनेगा ?देश की जनता तो कुली के सामान है जो रोजाना अपने सिर पर मुसाफिरों का बोझ उठाती है और उनका भार सहती है,मजदूरी के पैसे भी काम करने के बाद मिलते हैं लेकिन मुसाफिर अपनी जेब में हाथ डालकर चलते हैं और बीच बीच में कहते रहते हैं कि भैय्या कहीं दर्द तो नही हो रहा है ? कुली उनके सामान को स्टेशन के बाहर छोड़ आता है लेकिन भला कभी आपने किसी साहब को किसी भी कुली को अपने घर ले जाते देखा है?स्टेशन से बाहर निकलते ही साहब कुली को भूल जाते हैं और कुली भी वापिस प्लेटफार्म पर जाकर अपने रोजी रोटी के के लिए गाड़ी का इन्तजार करने लगता है/ लेकिन ईश्वरचंद विद्यासागर कलकत्ते में स्टेशन पर लोगों का बोझ उठाते थे और मुफ्त में भी क्योंकि वे नेता थे ज्ञानी थे और समाज का दर्द समझते थे /और आज के राजनेता एक रेली आयोजित करते हैं भीड़ बुलाई जाती है चंद रुपियों पैसों की खातिर उनकी चाकरी करने वाले उनके जिन्दाबाद होने के नारे लगाते हैं,भीड़ में बैठे उनके कुछ चमचे ताली बजाकर अन्य लोगों को भी ताली बजाने को प्रेरित करते हैं वाहवाही के इस ड्रामे की लाईव कवरेज कुछ दूरस्थ कुली समान जनता को भी दिखाई जाती है और राजनेता जिसको भारत का पूरा भूगोल भी पता नही,उसको यह भी नही पता कि भारत में कितनी भाषाएँ बोली जाती हैं,उसको यह भी नही पता की भारत में कुल कितनी जातियां जनजातियाँ धर्म सम्प्रदाय प्रचलन में हैं अपने को देश का कर्णधार ही घोषित नही बल्कि भारत की सत्ता का उत्तराधिकारी तक घोषित कर देता है और उसके चमचे उसको भारत का प्रधान मंत्री भी कहने से नही चूकते /जो एक किलोमीटर पैदल नही चल सकता वह भला देश की परिधि क्या नापेगा ?जिसके पास कोई शिक्षा नही वह भला क्या देश समाज को शिक्षित करेगा ?जिसने कभी कोई डंडा न खाया हो वह भला क्या डंडे का दर्द समझेगा?जिसको चौबीसों घंटों एसी में रहने की आदत पड़ी हुई हो और मुफ्त की रोटी तोड़ने की आदत बन चुकी हो वह भला कितने सेकण्ड धुप बारिश तूफ़ान आंधी का सामना कर सकेगा ?और ऊपर से अपने को देश का दीपक कहे तो क्या दीपक के साथ यह अन्याय नही हुआ?
भ्रष्टाचार शब्द आज के समय का सबसे अधिक लोकप्रिय शब्द है और जितना यह शब्द आजकल बोला जाता है उतना कोई अन्य नही बोला जाता और वर्ल्ड रिकार्ड बुक वालों को इस ओर ध्यान देना चाहिए /भ्रष्टाचार की गंगा में कुछ लोग अपनी इच्छा से नहाते हैं और कुछ को जबरदस्ती नहाना पड़ता है/दहेज़ देना लोगों को पसंद नही लेकिन दहेज़ लेने से किसी को परहेज भी नही/यही मापदंड इस समाज का हो गया है /बाबा लोग प्रवचन देते हैं की ईमानदारी से जीवन यापन करो, स्वपुरुषार्थ सर्वोत्तम है लेकिन यह उनका उपदेश दूसरों के लिए हैं अपने ऊपर लागू नही करना है /ईमानदारी से अगर कोई जीवन यापन करना भी चाहे तो व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि ईमानदारी से कारोबार या नौकरी कर ही नही सकता क्योंकि नौकरी भी तभी तक जीवित है जब तक ऊपर वाले संतुष्ट हैं और संतुष्टि का एक मात्र अर्थ है उनकी जेब भरना/कारोबारियों पर मिलावट के आरोप लगते हैं लेकिन मिलावट के बिना उनका कारोबार जिन्दा भी नही बचेगा क्योंकि दुनिया भर के टेक्स अगर वह ईमानदारी से अदा भी करना चाहे तो भी अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए भी घूस देनी पड़ेगी/ नाना प्रकार के इंस्पेक्टरों से पिंड ईमानदारी से नही छूटता क्योंकि जिस किसी भी विभाग के इन्स्पेक्टर का नोटिस व्यापारी के पास आ गया बस अब ए 4 साईज के कागज़ पर कुछ भी उत्तर लिखकर जब तक गाँधी की फोटो छपे नोटों को सलग्न नही किया जाएगा उस व्यापरी का जबाब पढ़ा ही नही जाएगा और नोटों की संख्या जानकार ही टेक्स लगेगा /अब व्यापरी को सोचना यह पड़ेगा कि कितना सरकारी खजाने में जमा करे और कितना विभागीय कर्मचारियों के जेब में क्योंकि दोनों ही सूरतों में पैसा तो जाना ही है /जिन जिन नौकरियों में साक्षात्कार की व्यवस्था है उसका एक मात्र अर्थ यही है कि रुपियों का ही साक्षात्कार होना है,अब ऐसी कौन सी नौकरी है जहाँ साक्षात्कार की व्यवस्था नही है ?रिश्वत देना अब मजबूरी ही नही बल्कि व्यवस्था का एक महत्पूर्ण अंग बन गयी है और रिश्वत कोई आज से नही बल्कि राजाओं महाराजाओं के जमाने से प्रचलन में है लेकिन तब गलत बात को सही कहने के लिए दी जाती थी और अब सही को सही कहने के लिए बस इतना परिवर्तन हुआ है? या यूँ कहें कि विकास हुआ है/अब इसी विकास की धारा को आगे बढ़ाने के लिए आपके प्रिय राजनेता कर्तव्यशील ही नही बल्कि संघर्षशील भी हैं/इस विकास की दिवाली के दीपक में मिटटी भी जनता है,कुम्हार भी जनता है,दीपक का तेल भी जनता है और बत्ती भी जनता है ,लेकिन उसमे आग लगाने को राजनेता हैं जो आपके अरमानों की माचिस पर अपने इरादों के बारूद से रगड़कर दीपक प्रज्वलित करते हैं जिसके प्रकाश से दिवाली तो राजनेताओं की बनेगी और जनता की पास शेष बचा अँधेरा जिसको आप कहते हैं दिया तले अँधेरा /
यह आपका सौभाग्य है कि आप आज इस विकास की धारा में दीपक बने हुए हैं और दीपक बेचारा अपना दर्द किससे बयान करे,इसका उत्तर वह कभी अल्लाह से पूछता है कभी राम से तो कभी कृष्ण से तो कभी वाहे गुरु से तो कभी जीसस से तो कभी भगवान् बुद्ध से पूछता है लेकिन उत्तर सिर्फ एक ही है और दीपक भी जानता है कि उसका धर्म एकमात्र जलना ही है और दुनिया को रोशन करना है सो भारत की जनता राजनेताओं के भविष्य को तो प्रकाशवान बनाती जा रही और अपने खुद के लिए अँधेरा ही अन्धेरा खडा कर रही है/
रचना रस्तोगी
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