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गण बड़ा या तंत्र, अब फैसला हो ही जाय

bharat
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संसद में अन्ना की तीन मांगों के पीछे सांसदों का एक दर्द भी बाहर आ गया / सारे के सारे एक सुर में संसद की मर्यादा और सांसदों की इज्जत की दुहाई दे रहे थे और नागरिकों को ही शिक्षा दे रहे थे / अब कोई इनसे यह कहने वाला नही कि गण हैं तभी तो गणतंत्र हैं,अगर गण ही ना रहेंगे तो गणतंत्र किस बात का ?क्या इन सांसदों ने यह भी कभी सोचा कि आखिर लोग आज नेताओं को गाली क्यों दे रहे हैं ?माना कि संसद सुप्रीम है तो इसकी गरिमा कौन बढ़ायेगा या घटायेगा,निश्चित रूप से वही जो इसका सदस्य होगा / जब चुनाव आते हैं तो क्यों उम्मीदवार अपने अपने क्षेत्र में जाते हैं ,खुद ही क्यों नही अपने को बिना चुनाव के विजयेता घोषित करलेते ?कर नही सकते क्योंकि चुनाव अनिवार्य है और चुनाव से पहले ये उम्मीदवार हाथ जोड़कर वोट मांगते हैं और जनता की आवाज संसद तक पहुंचाने का वायेदा भी करते हैं परन्तु संसद पहुँचते ही अपने वादे भूल जाते हैं तथा लूटखसोट के इरादे बना लेते हैं/अगर जनता इनसे इनके वादे याद दिलाने के लिये इनका घेराव करती है तो कौन सा गुनाह जनता ने कर दिया ?आखिर ये जनता द्वारा ही तो चुनकर आते हैं तभी तो अपने को लोकप्रिय भी कहते हैं/ अगर कोई संस्था या सामूहिक संगठन इनसे राष्ट्रहित में कोई बदलाव की मांग करती है तो यही सांसद उत्तर देते हैं कि पहले चुनाव जीतकर आओ तब बदलाव की बात करो क्योंकि संसद और सांसद सुप्रीम हैं इनसे कोई बात नही कर सकता ,तो येही बतलादें कि फिर पिछले दरवाजे से संसद में प्रवेश क्यों करते हैं ?राज्यसभा में नामांकन क्यों करवाते हैं क्यों नही राज्यसभा के भी सदस्य जनता द्वारा ही चुने जायें ?भरी संसद में एक भी सांसद ने यह नही कहा कि सांसद ऐसा आचरण ना करें जिससे जनता का उनपर से विश्वास उठ जाय सबके सब सहमे सहमे से अपनी ही रक्षा की बात कर रहे थे / वेतन लेने वाला कर्मचारी अगर अपने कार्यस्थान पर नही जाता है तो उसकी अनुपस्थ्ती में उसका वेतन कटता है परन्तु कांग्रेस पार्टी के एक सांसद इस सत्र में केवल एक बार नजर आये और कानून का उलंघन करके पंद्रह मिनट में अपना उपदेश देकर चले गये,केवल इसलिये कि वे सत्ता पक्ष की पार्टी की अध्यक्षा के पुत्र हैं,जो सांसद सत्र में अनुपस्थित रहते हैं उनका वेतन क्यों नही कटता? गणतंत्र गण की रक्षा के लिये बनाया गया था या गण का शोषण करने के लिये,गण से ही गणतंत्र है नाकि गणतंत्र से गण,बल्कि गण से गण के लिये ही गणतंत्र बना है और इसकी रक्षा के लिये संसद है जिसमे गण द्वारा भेजे गये प्रतिनिधि बैठने के अधिकारी हैं और इनकी कार्यप्रणाली एक सिस्टम या नियमावली के अधीन है जिसको संविधान कहते हैं / संविधान की रक्षा करना इन सांसदों की नैतिक मौलिक जिम्मेदारी है और संविधान जनता की सुरक्षा की गारंटी देता है और जब ये सांसद अपना मौलिक नैतिक कर्त्तव्य भूल जाते हैं तो जनता अगर इनको यह याद दिलाये तो क्यों इनको ईर्ष्या हो रही है/ अरे ! आज सांसद हो,पता नही कल रहो ना रहो,एक जनप्रतिनिधि मात्र हो राजा नही,क्योंकि यह राजतंत्र नही बल्कि गणतंत्र है/ जनता को अब इन सभी सांसदों की भावना और उद्देश्य समझ में आ चुके हैं इसीलिए बार बार चुनाव योग जनता से अपील करता है कि अपने मत का सोच समझकर प्रयोग करें वरना बाद में पछताना पड़ेगा जैसा कि इस समय हो रहा है/तिरंगा देश की आन बान शान है,यह कोई एक कपड़े का टुकड़ा नही कि इसको कहीं भी फहरा दो या लहरा दो ,इसका अपना एक अपना सम्मान है जिसकी रक्षा करना हम सब भारतीयों का धर्म है,परन्तु आजादी के इस तथाकथित दूसरी लडाई में तिरंगे का जितना अपमान हुआ शायद इतना कभी नही हुआ होगा?मोटर साईकिल , स्कूटर में तिरंगा बांधकर या एक रेली में तिरंगा लेकर चलते समय जब तिरंगा किसी किसी के हाथ से सड़क पर गिरा तो हजारों टायरों और जूतों तले रौंदा गया,इतना भी स्मरण नही रहा कि कितना गंभीर अपराध कर डाला / सांसदों ने भी यह मंजर टी वी पर जरुर देखा होगा इसलिये जनलोकपाल बिल बनाने से पहले इस तिरंगे के सम्मान हेतु विधेयक जरुर पास करना चाहिये और इसका अपमान में कड़े से कड़े दंड का प्राविधान होना चाहिये क्योंकियह राष्ट्र का प्रतीक है कोई तीन रंग का कपड़ा नही / तिरंगे की शान की रक्षा करने हेतु ही एक फौजी शहीद होता है/
रचना रस्तोगी

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