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विश्व में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो कभी बीमार ना पड़ा हो,अब वह यातो सरकारी सिस्टम में उपचार हेतु जायेगा या प्राईवेट क्षेत्र में / पहले चिकित्सक को भगवान् का दर्जा प्राप्त था ,अगर लोग थोड़े ही वर्ष पहले की स्थति को स्मरण करें तो घर में किसी बीमार को घर में दिखाने के लिये चिकित्सक को बहुत आदर सत्कार से लोग बुलाते थे,यहाँ तक कि उसका बैग या बॉक्स भी खुद ही पकड़ते थे,और सरकारी चिकित्सक के तो क्या कहने थे उसके सामने तो लोग स्कूटर साईकिल से भी उतर जाते थे / अब हालत यह है कि चिकित्सक की पिटाई होती है,उसकी क्लिनिक तोड़ी जाती है ,उसके नर्सिंग होम में तोड़फोड़ होती है,उसके विरुद्ध उपभोग्ता फोरम में मुकदमा चलता है/ लोगों की दृष्टि में यह भगवान् से हैवान में परिवर्तित कैसे हो गया / जब लाखों रुपियों की डोनेशन से चिकित्सा योग्यता की स्नातक एवं स्नातोकोत्तर डिग्री खरीदी जाती है क्योंकि सरकारी मेडिकल कोलिजों में आरक्षण की वजह से अधिकाँश सामान्य वर्ग के बच्चों के लिये और कोई विकल्प है ही नही, और नौकरी मिलती नही है सरकार कहती है कि पद खाली पड़े हैं यह तथ्य बिलकुल असत्य है क्योंकि बेरोजगारी के इस समय में कौन सरकारी नौकरी छोड़ेगा और सरकारी मिलती किसको है सबको पता है केवल अनुसूचित जाति और जनजाति,ओ बी सी को, और इन सरकारी अस्तपतालों में तो स्वयं नेता भी इलाज कराने नही जाते परन्तु सामान्य वर्ग वाला चिकित्सक कहाँ जाये?अब चिकित्सक प्राईवेट स्तर पर ही अपने भरणपोषण की योजना बनाता है,सुन्दर रहन सहन का सपना देखना कोई बुरी बात तो नही,खुले बाजार में दुकानों का रेट क्या है सभी को पता है,हर वस्तु महंगी है,सब लोगों को उद्योग लगाने हेतु सब्सिडी मिलती है परन्तु चिकित्सा व्यवसाय करने वाले को कोई सब्सिडी नही मिलती है,फिर चिकित्सक अच्छा वो जो अपनी क्लिनिक पंचसितारा होटल के शो रूम जैसा बनाये, एक सुन्दर सी रिशेश्पनिस्ट भी रखे,चिकित्सक के पास लम्बी गाड़ी भी हो,क्लिनिक में मरीजों की लम्बी कतार भी हो,यह लोगों का एक सफल चिकित्सक के बारे में विचार होता है/ लोगों की इसी आशा को पूरा करने के लिये योग्य चिकित्सक गाँव गाँव जाकर झोलाछाप चिकित्सकों से मरीजों को भीख मांगता है,लम्बी गाड़ी को मेंटेन करने के लिये दवा की कंपनियों से सहायता मांगता है,क्लिनिक को मेंटेन करने के लिये पेथोलोजिस्टों और रेडियोलोजिस्टों से व्यावसायिक गठबंधन करता है ,और अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु नजदीकी रिटेल मेडिकल स्टोर से भी व्यावसायिक गठबंधन करता है / कभी सोचा है कि इस ईश्वरीय कृपा से अनुग्रहित मानवीय सेवा को व्यवसायिक बनाने या इस निम्नस्तर तक पहुंचाने का जिम्मेदार कौन है ?क्या हम या चिकित्सक की स्वयं की अपेक्षायें ………….
रचना रस्तोगी
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