- 178 Posts
- 240 Comments
भारत में आम बोलचाल भाषा में कुछ मुहावरे ऐसे भी है जिनका कोई शाब्दिक अर्थ चाहे कुछ ख़ास ना हो परन्तु उनका भावार्थ बहुत गंभीर होता है/ भूत होता है या नही ये बहुत ही रोचक विवादास्पद विषय है, आध्यात्म या तंत्र का तो यह विषय गूढ़ केंद्र है पर इसके अस्तित्व पर तो विज्ञान भी बंटा हुआ है,कुछ वैज्ञानिकों का भूत में विश्वास है,जबकि कुछ की दृष्टि में यह शुद्ध पाखण्ड / खैर तुलसीदासजी द्वारा रचित हनुमान चालीसा तो इसके अस्तित्व को सिद्ध करती है / समस्या यही है परन्तु भूत लंगोटी पहनता है या नही, फिर एक नया विवाद / जब भूत ही नही तो भला लंगोटी कैसे ?और भागते भूत की लंगोटी भली ही क्यों,बुरी क्यों नही ?आखिर भूत इंसान को देख डरकर भागता है,या इंसान भूत को देखकर भागता है/ इनमे से कौन किस्से डरता है ? अब तो यह ऐसा ही प्रश्न हो गया कि मन मोहन सिंह ईमानदार हैं कि नही ? अब लोग कहेंगे कि बात भूत की हो रही थी इसमें मनमोहन सिंह कहाँ से आ गये,देखो भैय्या !!,जो दिखता है वह यातो इंसान होगा या इंसान के अलावा कुछ और कृति,मतलब इसका उल्लेख यातो प्राणीविज्ञान में होगा या बनस्पतिविज्ञान में और हो ना प्राणी हो और ना बनस्पति हो उसको क्या कहेंगे ?बस उसको ही भूत कहते हैं !!इसी प्रकार व्यक्ति अपने को ईमानदार कहता फिरे जबकि कर वह बेईमानी रहा है,आपको बेईमानी दिखती है और वह अपने को ईमानदार कह रहा है/ अब ईमानदारी भी भूत की ही तरह है जो दिखती भी है और नही भी,जिसको भूत दिखता है उसको ईमानदारी दिखती है और जो भूत नही देख पाता उसको ईमानदारी नही दिखती/ अब लोग धर्म निरपेक्ष हो गये हैं,भाई ! दो ही तो विकल्प हैं आपके पास यातो धर्म को मानोगे या नही,धर्म को छोड़ा तो अधर्म को ही तो अपनाया,यह अधर्मगामिता ही धर्मनिरपेक्षता है , के इसीलिए तो दिग्विजयसिंह कलमाड़ी,राजा,कनिमोझी,और सभी लूटतंत्र के महारथियों को निर्दोष कह रहे हैं क्योंकि उनको बेईमानी उर्फ़ भूत दिखाई ही नही दिया,और मनमोहनसिंह तो धर्मअवतार हैं भला बे भ्रष्ट क्यों होने लगे ?अब समय की पुकार यही है कि इन सभी लूटतंत्र के महारार्थियों को भारत रत्न से नवाजा जाय,और जनता के पास केवल भागते भूत की लंगोटी ही रह जाय !!!
रचना रस्तोगी
Read Comments