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सभी राजनीतिक पार्टियों ने एक साथ मिलकर “अन्ना” को हाशिये पर खिसका दिया है /अगर वास्तव में देखा जाय तो “अन्ना” की मुहिम को कमजोर बनाने में सबसे बड़ा हाथ तो “स्वामी रामदेव” का ही रहा /अगर स्वामी रामदेव थोड़े दिन और शांत बैठ लेते तो शायद यह संभव था कि “अन्ना” की मुहिम थोडा और गंभीर रंग लाती / रामदेव ने ना केवल अपना फजीता कराया बल्कि अब तो लोग किसी अनशन पर भी जाने से डरने लगेंगे/ कारण स्पष्ट है कि सरकार और इनके सहयोगी दलों ने स्पष्ट कह दिया है कि अनशन आदि को होने देना ही सबसे बड़ी भूल थी/और कांग्रेस के एक प्रवक्ता श्री दिग्विजय सिंह ने तो बहुत ही स्पष्ट शब्दों में हकीकत समझा दी है/अब इतना तो लगभग साफ़ है ही लोकपाल बिल अब सशक्त नही आयेगा क्योंकि कोई भी राजनेतिक दल इसपर गंभीर नही है और “अन्ना” को सभी पार्टियों ने लोक सभा का चुनाव जीतकर संसद में यह मुद्दा उठाने की राय दी है,मतलब रंगमंच के कलाकारों,मैच फिक्स करके देश की प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचाने वालों और ख़बरों की मार्केटिंग करने वालों को तो पार्टियाँ राज्यसभा का सदस्य बना सकती हैं,परन्तु देश से भ्रष्टाचार हटाने की वकालत करने वालों को नही/ देशवासियों को अब इतना समझ ही लेना चाहिये कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले भ्रष्टाचार किसी भी सूरत में समाप्त नही होगा,अगले चुनाव में अगर लोग ईमानदार प्रतिनिधि चुन लेते हैं तभी यह संभव है वरना देश से भ्रष्टाचार समाप्त करना मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने जैसा ही है/ जिनलोगों ने अपने काम रोक रखे थे कि शायद लोकपाल बिल पास हो जायेगा और बिना रिश्वत दिए काम बन जायेगा उनको अपने रुके हुए काम अब रिश्वत देकर करा ही लेने चाहिये/
रचना रस्तोगी
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