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शब्दों की जुगलबंदी गीत है,कविता नही

bharat
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आजकल मीडिया से पब्लिसिटी पाने का ज़माना है / अगर कोई सड़क पर खड़ा होकर आज नेताओं या लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को सरे आम गाली देने लग जाता है तो उसका यह कटाक्ष भाषण लोगों को बहुत ही अच्छा लगता है / आजकल लोग ताली ही गालियों पर बजाते हैं /सभी नेताओं को भ्रष्ट कहना बहुत अच्छी बात है,भारतीय संविधान की मजबूरी बयान करना भी बहुत अच्छी बात है,भारतीय न्याय व्यवस्था एवं कानून व्यवस्था पर टिप्पणी करना भी ठीक है,समस्त सरकारी कर्मचारियों को भी भ्रष्टाचारी कहना परन्तु अपने को उनमे से अलग करना जरा सोचने को मजबूर कर दी देता है / ऐसे ही एक महाशय कहीं किसी सभा में अपनी जुगलबंदी प्रस्तुत कर रहे थे ,भ्रष्टाचार की नयी परिभाषा पेश कर रहे थे, परन्तु बातों बातों में वे अपना संक्षिप्त परिचय भी एक अध्यापक के रूप में करा गये/ खैर किसी ने वहाँ उपस्थित लोगों से पूछा कि महाशय अपने विद्यालय में ,जिससे वेतन पाते हैं, कितने दिन पढ़ाने जाते हैं,तो उनके विद्यालय के ही एक छात्र ने बताया कि उनको पढ़ाते हुए तो शायद ही किसी ने देखा हो / पहले कभी पढ़ाया हो तो पता नही परन्तु पिछले कुछ वर्षों से तो इनका प्रमुख व्यवसाय गीतकारी ही है / खैर यह कोई नयी बात नही क्योंकि भारत एक स्वतंत्र देश है और यहाँ सबको कोसने की खुली आजादी है सभी भ्रष्टाचारी हैं बस स्वयं ही इसके अपवाद हैं / शब्द आखिर शब्द हैं, इनका उचित प्रयोग करना चाहिये,क्योंकि ये ऐसे तीर हैं जिनको छोड़ने के बाद किसी भी सूरत में वापिस नही लिया जा सकता / ये शब्द परस्पर दो मित्रों में वैमनस्य भी बढ़ा सकते हैं और दो दुश्मनों का मेल भी / गाली चाहे जोर से बोलो या धीरे से ,गाली तो गाली ही है / अपना पक्ष अगर ठीक है तभी दूसरों को निशाना बनाना तर्क संगत समझा जा सकता है/
रचना रस्तोगी

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