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भारत में अध्यात्म और पतन दोनों शिखर पर

bharat
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भारत में घर घर में आध्यात्म व्याप्त है/ जिसे देखो वह कहता दिख जाएगा कि संसार में जो भी आया है उसका यहाँ से जाना भी निश्चित है/ कितना भी धन वैभव संपत्ति जोड़ लो,सब यहीं रह जाना है यहाँ तक कि जिन रिश्ते नातों के लिये लड़ रहे थे वे भी साथ नही देते,अजी उनकी ही कौन कहे ! अपना शरीर भी छूट जाता है/ भारत में वर्तमान में जितना धर्म का प्रचार अब हो रहा है शायद इतना पूर्वकाल में नही हुआ होगा ,कारण कि इस समय प्रचार सामग्री बहुत सुलभ है/ हर किसी भगवा वस्त्रधारी के प्रवचनों को सुनने के लिये हजारों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है/ तो कहने का तात्पर्य यही है कि भारत के जन जन में वैराग्य संतोष सामंजस्य कूट कूट कर भरा है,बहुत भाई चारा है,परन्तु इतना सब होते हुए भी धन संपत्ति वैभव के लिये लड़ाई भी विश्व में सबसे ज्यादा भारत में ही होती है/ लगभग हर समाचार पत्र में,रोजाना ही खबर छपती है कि भाई ने मात्र एक गज जमीन के लिये अपने सगे भाई का क़त्ल कर दिया या करवा दिया ! अपने भाई की पत्नी के साथ अश्लील हरकत की ! अपने घर की खुशियों के लिये अपने भाई के बच्चे की बलि दे दी ! पति ने अपनी ही पत्नी की हत्या कर दी ! पत्नी ने अपने ही पति की हत्या की सुपारी देकर करवाई ! माता पिता समान सास ससुर ने अपनी बहु को जिन्दा जला दिया ! और अब तो जन्म देने वाले माता पिता ही अपने बच्चों की हत्या कर देते हैं ! गुरुजन पीते जाते हैं ! गुरुजन अपने पुत्री समान कन्याओं पर गन्दी निगाह रखते हैं ! सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में धर्म का प्रचार का ठेका लेना वाले बड़े बड़े अखाड़ों में धन संपत्ति के लिये रंजिशन हत्याएं होती हैं ! लोगों को माया मोह से दूर रहने का सुन्दर भाषण देने वालों के यहाँ करोड़ों की संपत्ति नगद रूपया और सोना चाँदी मिलता है ! धार्मिक उपदेश करने वाले स्वयं भू घोषित जगदगुरु बाबा पता नही किस लोक की उपाधियाँ दिखाकर कुंवारी कन्याओं का देह शोषण करने के पीछे अपने को भगवान का अवतार बताते हैं,जिनके किस्से अख़बारों की सुर्खियाँ बनते हैं ! राष्ट्र को चलाने का स्वांग रचने वाले तथाकथित ईमानदार नेतागण राष्ट्र को ही बेचकर खा रहे हैं ! मतलब यहाँ कितना विरोधाभास है / जितना सैद्धांतिक रूप से भारत महान है उतना ही प्रेक्टिकल स्वरुप से भ्रष्टता में भी शिखर पर है/ आखिर इसका कारण क्या है ? सोचना तो चाहिये ही !!!
रचना रस्तोगी

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