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अन्ना हजारे ने भारत के स्वयंभू घोषित तःथाकथित ईमानदार प्रधानमंत्री से आखिर पूछ ही लिया कि सारा देश नही बल्कि मीडिया और नेतागण समुदाय ही जब आपको ईमानदार ईमानदार कहने में लगा है तो प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायेरे में आने से आपत्ति क्यों ? चोर कैसे कहे कि जेल बनी ही उसके लिये है / किसी गेंग के सरगने को या किसी अपराधिक संगठन के मुखिया को आप ईमानदार या सत्यवादी या राष्ट्रभक्त कहने लगेंगे तो शुरू शुरू में उसको बहुत अच्छा लगेगा परन्तु कुछ ही दिनों बाद यह “सम्मान” उसको गाली समान लगने लगेगा या वह व्यक्ति आत्मग्लानि से जलने लगेगा क्योंकि वह अपनी सत्यता आखिर जानता तो है ही / परन्तु व्यथा या पीड़ा व्यक्त नही कर सकता / ऐसे किसी अनपढ़ के लिये किसी सार्वजानिक मंच पर उसको विद्वत परिषद् का अध्यक्ष कहने लग जायेंगे तो बेचारा सिवाय मौन रहने के अलावा और कुछ कर ही नही सकता / सभी ईमानदार हैं यहाँ बेईमान कौन है? सबसे बड़ा बेईमान तो वही है जो इस कुव्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाये, उसके लिये चाहे संविधान में कोई दंड ना भी हो तो भी सरे आम रात को बारह बजे उसकी पिटाई कर दी जायेगी, ताकि उसको अपनी गलती का एहसास हो सके और अन्य लोग जो उसका अनुसरण करना चाह रहे हों उनको भी समझ में आ जाय / देश के ही साधारण जनसमुदाय की बेवजह सार्वजनिक पिटाई पर प्रधान मंत्री कानून की दुहाई देने को तैयार हैं परन्तु जहाँ लाखों करोड़ों की लूट और बंदरबांट हुई हो वहाँ चुप हैं / जिस देश में कानून की पढ़ाई सरकारी कोलिजों से लेकर प्राईवेट कोलिजों तक में पढ़ाई जाती है वहाँ अभी तक किसी भी कानूनविद ने यह नही बताया कि अपना जूता अपने ही हाथ में पकड़ना किस धारा या अपराध के अंतर्गत आता है ,किसी शरीफ या ईमानदार या राष्ट्रभक्त को जूता मारना तो अपराध हो सकता है परन्तु अपना जूता अपने हाथ में पकड़कर उठाना अपराध कैसे हो गया और जब कई लोग अपने हाथ में कानून लेकर निहत्थे व्यक्ति की मीडिया के सामने ही पिटाई करें तो वे अपराधी नही हैं/ खैर बात चल रही थी,लोकपाल बिल की ,सबसे बड़ा शंका यही है कि लोकपाल बिल पास होगा कि नही और क्या प्रधान मंत्री लोक पाल बिल के दायेरे में आयेंगे कि नही ? कांग्रेस कहती है कि कानून संसद बनायेगी और सड़क पर यह मुद्दा तय नही होगा और बिल पास होगा संसद में बहस के बाद/ ठीक है थोड़े ही दिनों में सभी राजनेतिक दलों की भी पोल पट्टी खुल जायेगी,कि वे क्या कहते हैं, क्या वे भी प्रधानमंत्री की तरह ही पूर्णतः ईमानदार हैं ? इसका केवल एक ही विकल्प है कि देश की जनता स्वयं प्रधानमंत्री चुने, और प्रधानमंत्री अपना मंत्रिमंडल लोकतान्त्रिक चुनाव व्यवस्था से आये सदस्यों में से तय करे / ऐसा करने से प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल दोनों ही लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुने जायेंगे और जनता स्वयं ही प्रधानमंत्री चुनेगी जिस पर अंकुश लोकपाल लगाएगा जिसका चुनाव भी जनता ही करेगी / परन्तु दुर्भाग्य तो यही है कि हमारी राय या आपकी राय तो चलनी ही नही है हमें तो तःथाकथित ईमानदारों की राय से ही चलना है क्योंकि भाई वे जन प्रतिनिधि हैं परन्तु ईमानदार प्रधानमंत्री का चुनाव तो जनता ने किया ही नही है वे तो राज्य सभा से संसद में भेजे गये हैं और उनका चुनाव भी तथाकथित ईमानदारों ने किया है,अगर इनके काम से देश को नुक्सान हुआ है तो इनके साथ साथ वे लोग भी दोषी हैं जिन्होंने इनको राज्यसभा का सदस्य बनाया है/
रचना रस्तोगी
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