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भारत में भ्रष्टाचार एक ऐसा स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में सर्वाधिक चर्चित संवाद है जिसके बिना आपकी दैनिक दिनचर्या पूरी ही नही हो सकती/ आजकल जब तक लोग प्रतिदिन एक दो नेताओं या सरकारी कर्मचारियों को मन ही मन गाली नही दे लेते उनका खाना हजम ही नही हो सकता/ और यह बीमारी केवल मतदाताओं में ही नही है बल्कि लोकतंत्र के खिलाडियों में भी है/ जितने भी नेता चुनाव में लड़ने के लिये अपनी अपनी पार्टी के आला कमानों के पास उस पार्टी से चुनाव में उम्मीदवार बनने का टिकेट मांगने जाते हैं उनमे केवल एक को ही टिकेट मिलेगा या शुद्ध भाषा में कहें बिकेगा ,/ शेष खिलाड़ी जिनको टिकेट नही मिलता है या नही खरीद पाते हैं उनकी प्रतिक्रिया चंद मिनटों के बाद ही आ जाती है कि पक्षपात हुआ है और टिकेट ज्यादा रुपियों में बेचा गया/ सारे के सारे केन्द्रीय मंत्री या राग अलाप रहे हैं कि भ्रष्टाचार की बात केवल जनप्रतिनिधि ही कर सकते हैं और यह लड़ाई सड़क पर नही लड़ी जा सकती क्योंकि इस लड़ाई को लड़ने का अधिकार केवल संसद सदस्यों को ही है/ अब ये संसद सदस्य क्या जनता को बताएँगे कि चुनाव का टिकेट नंबर एक के धन से मिला या नंबर दो के धन से ? जब एक नगरनिगम चुनाव में ही सभासद के उम्मीदवार का टिकेट ही लाखों रुपियों में बिकता है तो विधायक या सांसद बनने के टिकेट का मूल्य आँका जा सकता है/ सोचने की बात तो यही है कि जो व्यक्ति नगरनिगम या विधान सभा या संसद में पहुंचा ही काले धन की कृपा से है वह आगे ईमानदार कैसे रह सकता है?धन तो भैय्या धन है क्या काला और क्या सफ़ेद ? लगभग हर भारतीय ही रोजाना अपने सफ़ेद धन को काला बनाता है,बिजली का मीटर लगवाना हो तो रिश्वत देनी पड़ेगी,बिजली की कम्प्लेंट लिखवानी हो रिश्वत देनी पड़ेगी,नगरनिगम में कोई काम करवाना हो तो रिश्वत देनी पड़ेगी,तहसील से लेकर न्याय बेचने की मंडी अदालत तक रिश्वत का बोलबाला है बिना रिश्वत दिए तो कोर्ट में डेट भी नही लगती, आलम यह है कि किसी भी दैनिक रोजमर्या के सामान से लेकर औषधि बिक्री की दूकान तक सामान खरीदने पर आपको रसीद नही मिलती है,क्या मूल्य है आज पांचसौ रुपये के नोट का ? इसमें अब एक प्लास्टिक का छोटा सा खलता भी नही भरता / तीन हजार रुपये महीने का तो एक छोटी सी फेमिली में दूध का खर्च होता है क्या इसकी रसीद डेरी वाला देगा? यह जानते हुए भी बिना दूध या चाय के दिन नही गुजरेगा तो बताओ या धन काला हुआ या सफ़ेद ?जो लोग पैसे वाले हैं वे सराफे में सोना चाँदी खरीदने जाते हैं क्या उनको ही रसीद मिलती है वहन ना रसीद लेने में खरीददार इच्छुक है और नाही दुकानदार/ इसलिए काले धन पर तो फिलहाल कुछ होने वाला नही है.ज्यादा शोर मचेगा तो सरकार छोटे छोटे लोगों पर टैक्स और बढ़ा देगी / सुनने में आया है कि सरकार लघु बचत योजनाओ को बंद करने जा रही है, तर्क यह है कि धनी लोग अपना नंबर दो का धन इसमें लगा रहे हैं/ धनी तो कहीं और भी लगा लेगा परन्तु छोटा अब कहाँ जाएगा ?छोटे व्यक्ति से वित्त मंत्री कहते हैं कि अपनी थोड़ी सी ही पूँजी शेयर बाजार में लगाओ मतलब सरकार शुद्ध भाषा में जुआ या सट्टा को ही बढ़ावा दे रही है,जीसे हर्षद मेहता जैसे लोग लोगों का धन हड़प कर गायब हो जायें या स्पीक एशिया जैसी स्कीम में लोग धन लगावें और फिर कंगाल हो जायें/ कहने का तात्पर्य यही है कि नेताजी परामर्श तो देवें जनता को परन्तु खुद अमल ना करें,बस यही अब लोकतंत्र है /
रचना रस्तोगी
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