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आजकल जिसे देखो वह अपने को राष्ट्रभक्त कहने में ही लगा है/ नेताओं और बाबाओं से लबालब इस देश में सारे नेता और सारे ही बाबा देश भक्त हैं जबकि जनता की निगाह में दोनों ही शुद्ध व्यापारी हैं जिनका एक मात्र काम जनता को दुहना मात्र है/ कोई धर्म के नाम पर,कोई सेवा के नाम पर और कोई राजनेतिक वंशवाद की परंपरा की बुनियाद पर देश भक्त बना हुआ है/ भारत को आजाद हुए तरेसठ साल हो गये जिसमे लगभग पचपन वर्ष तो कांग्रेस से ही केंद्र में शासन किया है, तो स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार करने का सबसे ज्यादा अवसर भी इन्ही को ही मिला होगा, फिर भी पता नही इनको राष्ट्रीय सेवक संघ से क्या दुश्मनी है कि हर घटना के पीछे ये आरएसएस को ही दोषी ठहराने लगजाते हैं/ जो भी कोई सामाजिक अपराध की घटना घटित हो या कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाये बस कांग्रेसी उसको आरएसएस का मुखौटा बताने लग जाते है / आज देश में सर्व्यापक गरीबी भुखमरी बेरोजगारी बीमारी भय अन्याय या भ्रष्टाचार है है तो उसके लिये कौन जिम्मेदार हुआ? उसके बाद भी अपने को राष्ट्रभक्त कहना क्या कांग्रेसियों को शोभा देता है ? क्या आरएसएस संस्था से जुड़े लोग मनुष्य नही हैं, क्या उनको अपनी बात कहने का अधिकार नही है, क्या आरएसएस से जुड़े लोगों को इस देश को अपना देश कहना का अधिकार नही है? क्या ऐसा कोई कानून है कि जो भी अपने को राष्ट्रभक्त कहता है तो उसको पहले कांग्रेस से कोई प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है / आज तक प्रधानमंत्री या कांग्रेस की अध्यक्षा ने ही कितने भूखों को अपने घर भोजन कराया है,कितने प्यासों को पानी पिलाया है,कितने पशुओं पक्षियों की सेवा की है ,और तो और इन नेताओं के रहने ,इलाज आदि की व्यवस्था का खर्च भी भारत की ही जनता वहन करती है, /इन सत्ताधारी नेताओं के मरने तक में अंतिम क्रिया कर्म का भी सारा खर्च का बोझ सरकारी खजाना उठाता है जो कि जनता के टैक्स से ही भरा जाता है है/ अगर कोई विदेशी मेहमान भी इनके यहाँ ठहरता है उसके खाने पीने का खर्च भी भारत की जनता ही वहन करती है/ बस अब राष्ट्र की संपत्ति को हजम करने वाले ही देश भक्त कहे जाने लगे हैं क्या यही राष्ट्रभक्त ही परिभाषा है?
रचना रस्तोगी,
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