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मनुष्य मनुष्यता को क्यों भूल रहा है ?

bharat
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“संत” को किसी भी धर्म ,सम्प्रदाय या जाति से बांधकर नही देख सकते क्योंकि संत जनसमुदाय मानवहित की विस्तृत विचार धारा पर काम करता है/ अगर “संत” किसी एक विशेष धर्म या सम्प्रदाय या जाति के ही हित में सोचे तो वह “संत” ही कहाँ हुआ/ “संत” का चिंतन चौबीस घंटे केवल मानवहित का होता है और इस मानव समुदाय में हिंदु भी है मुस्लिम भी सिख भी और ईसाई भी/ क्या ऐसा कोई मनुष्य है जिसका अन्य धर्म या सम्प्रदाय या जाति के लोगों से कभी वास्ता ना पड़ा हो,काम ना पड़ा हो/ सबका सबसे काम पड़ता है/ बडौत शहर में एक जैन मुनि बड़े बड़े शहरों में चल रहे बेजुबान पशुओं की निर्मम हत्या करने वाले यांत्रिक कसाई खानों के विरोध में आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं,इन पशुओं की बड़े स्तर पर हो रही हत्याओं से ना केवल दूध की आपूर्ति ही कम हुई है अपितु शहरों में प्रदुषण भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है/ अब ऐसा तो है नही कि केवल जैनी या हिंदु या ईसाई ही दूध पीते हों या चाय पीते हों,मुस्लिम वर्ग को भी दूध की उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि अन्य धर्म के मानने वालों को/ मैं अपने स्तर से यही कहना चाहूंगी कि लोगों को इन बेजुबान पशुओं की निर्मम हत्या करने वाले कसाई खानों का ना केवल सामूहिक रूप से शांति पूर्वक विरोध करना चाहिए,बल्कि लोगों को शाकाहार करने की ओर प्रेरित करना चाहिए/ अपने तीन साल के अनुभव और आंकलन और लगभग बीस बड़े जिला स्तर के शहरों में सभी धर्म के लोगों के खाने पीने का रुझान एवं शौक का अध्यन विवरण एकत्र करने के बाद मेरा निष्कर्ष निम्न है,
पूर्णतः शाकाहारी आबादी( जो कभी अंडा मांस मछली नही खाते) – 50 प्रतिशत
पूर्णतः मांसाहारी आबादी (जिनको रोजाना ही मांस चाहिए) – 15 प्रतिशत
सप्ताह में एक दिन मांस खाने वाली आबादी – 10 प्रतिशत
शराब के साथ मांस का सेवन करने वालों की आबादी – 15 प्रतिशत
केवल किसी उत्सव या समारोह में मांस खाने वालों की आबादी – 5 प्रतिशत
अन्य अनिर्णीत ग्रुप जहाँ कोई खास वर्गीकरण नही है की आबादी – 5 प्रतिशत
यानी आधा भारत पूर्णतः शाकाहारी है/ भारत में जहाँ सदा से अहिंसा, दया, करूणा, प्रेम ,सदाचार,आपसी सद्भाव का ही ज्ञान ,संस्कार और वातावरण रहा है,जहाँ रसखान,जायसी ,रहीम,कबीर , जैसे मुस्लिम संतों ने भी भगवान् के प्रेम में मदमस्त होकर गीत, पद,काव्य,भजन गाये लिखे हैं जिनको पाठ्यपुस्तकों में भी पढ़ाया जाता,ये सब जीवों पर दया करने की शिक्षा देते हैं/ कोई भी मजहब या धर्म किसी भी जीवित पशु या मनुष्य की निर्मम हत्या को उचित नही ठहरा सकता / इसलिए मनुष्य को मनुष्य बनने का प्रयास करना चाहिए ना कि पशु बनने का/ मांसाहारी पशुओं और मनुष्यों की आतंरिक शारीरिक बनावट में भी बड़ा भारी अंतर होता है जंतु विज्ञान के विशेषज्ञ इस तथ्य को क्यों नही लोगों को बताते कि मनुष्य की आंते बहुत लम्बी होती हैं,जैसी कि गाय भैंस या बकरी आदि की / तात्पर्य यह है कि इन शाकाहारी पशुओं एवं मनुष्यों की आंतों को सेलुलोज से बनी चीजों को ही ठीक ठीक पचाने के शक्ति होती है,क्योंकि इनकी आँतों से निर्गत रासायनिक द्रव्य यानि एन्जायिम भी बनस्पतियों को ही पचाने में सक्षम हैं/मांसाहार , मनुष्यों के लिए वैसे भी अवैज्ञानिक है जिसके कारण मनुष्यों को केंसर और अन्य गंभीर रोग हो रहे हैं /
मैं आदरणीय जैन मुनि से यह प्रार्थना करना चाहती हूँ कि वे लोगों को शाकाहार करने के लिए भी प्रेरित करें/ और पढ़े लिखे लोगों को जो अपने को श्रेष्ठ मनुष्य की श्रेणी में रखना चाहते हैं उनसे भी अपील करती हूँ कि वे धर्म, सम्प्रदाय या जाति का बंधन समाप्त करके जैन मुनि का समर्थन करें क्योंकि उनका आन्दोलन किसी धर्म जाति या सम्प्रदाय के विरोध में नही बल्कि पूरी तरह मानव हित में है/ भगवान् ने तो केवल मनुष्य बनाया था उनको ईसाई, मुसलमान,हिंदु या सिक्ख लोगों ने बाँट दिया / मनुष्य का पेट भरने को भगवान् ने बनस्पति बनायी परन्तु मनुष्य ना केवल बनस्पति का ही दुश्मन बन बैठा बल्कि पशुओं की निर्मम हत्या पर उतारू हो गया और दुधारू पशुओं को ओक्सिटोसिन का इंजेक्शन देकर पशुओं को असहाय कष्ट देकर उनका दूध भी निकालने लगा/ अगर वैज्ञानिक जिस दिन दर्द नापने का मीटर बना लेंगे तब लोगों को पशुओं को होने वाले दर्द या पीड़ा का अहसास होगा/
इसलिए मेरी सबसे यह प्रार्थना है कि पशुओं पर अत्याचार मत करो,ईश्वर से डरो और सब प्राणियों पर रहम खाओ/ अगर मनुष्य मनुष्य ही बना रहे तो भी वह ईश्वर का सबसे अधिक प्रिय बन सकता परन्तु ईश्वर की बनायी श्रृष्टि में ईश्वर विरुद्ध कार्य करके ईश्वर को अन्य किसी भी प्रकार से प्रसन्न नही किया जा सकता /
रचना रस्तोगी

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