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“अन्ना हजारे” के जन आन्दोलन ने भ्रष्टाचार को एक व्यापक स्वरुप दे दिया है तो आखिर यह भ्रष्टाचार क्या है? इस आन्दोलन में डाक्टर,इंजिनियर ,वकील,पत्रकार,छुटपुट नेता,कुछ बाबा और सबसे महत्पूर्ण अंग बेचारे पढ़े लिखे बेरोजगार नवयुवक शामिल हुए/ सबका प्रतिशोध केवल सरकार के विरुद्ध था,और ऐसा लगता था कि जैसे केवल सरकार ही भ्रष्ट है और बाकी सारे ईमानदार / सरकार और सरकारी कर्मचारियों तो निश्चित भ्रष्ट है परन्तु इस जन आन्दोलन में शामिल होने वाले भी कोई दूध के धुले नहीं है /क्या रिटेल मेडिकल स्टोर वाले बिना फार्मेसिस्ट के दवा नहीं बेच रहे हैं,क्या किराना स्टोर वाले नकली व मिलावटी सामान नहीं बेच रहे हैं,क्या दूध और दूध से निर्मित खाद्य पदार्थ बेचने वाले मिलावट नहीं कर रहे है,क्या प्राईवेट डाक्टर जनता को लूट नहीं रहे हैं,क्या वकील अपने मुवक्किल को चूस नहीं रहे हैं,क्या धर्म की आड़ में रंग बिरंगे कपड़े पहनकर बाबा लोग अपना व्यवसाय नहीं चला रहे हैं,क्या प्राईवेट क्षेत्र में तकनीकी शिक्षा बेचने वाले छात्रों को धोखा नहीं दे रहे हैं,क्या मीडिया ईमानदार है,प्राईवेट स्तर पर ट्यूशन का काम करने वाले मास्टर क्या अपने छात्रों को धोखा नहीं दे रहे हैं,क्या पेट्रोल बेचने पम्प मालिक डीजल पेट्रोल में मिलावट नहीं कर रहे हैं,कितने ऐसे हैं जिन्होंने अपने बच्चों की शादी में दहेज़ लिया दिया ना हो, अगर सरकार भ्रष्ट है तो इस भ्रष्टाचार के मध्यस्थ(दलाल) भी इस जन आन्दोलन में थे,अगर टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले या कामन वेल्थ गेम्स घोटाले या मेडिकल व डेंटल कौंसिल में प्राईवेट कोलिजों को मान्यता देने में रिश्वत का आदान प्रदान हुआ है तो इसका लाभ लेने वाले भी इस आन्दोलन में थे/ ये सब तो सरकार के व्यक्ति नहीं थे,उजले कपड़े पहनने से ,या हाथ में झंडा उठा लेने से, या धरना प्रदर्शन करने से या रेल रोको आन्दोलन चलाने से आप ईमानदार नहीं हो जाते,अगर हिम्मत है तो आरक्षित वर्ग अब आरक्षण का लाभ लेना बंद करके सबके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चले/ पहले खुद भी तो ईमानदार बनो,यदि इस आन्दोलन में शामिल लोगों से यह पूछा जाता कि कितने ऐसे हैं जो शत प्रतिशत ईमानादार हैं,वेही आगे आयें तो शायद “अन्ना हजारे” ही केवल अकेले रह जाते/ दोसरों को दोषी बताना और उपदेश देना बहुत सरल है मगर अपने ऊपर अंगुली उठाना वास्तविक पुरुषार्थ है /आप करो वो शिष्टाचार और दूसरा करे तो भ्रष्टाचार//
रचना रस्तोगी
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