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समाज में आज कल ये कर्ण आश्रम ,कुष्ठ आश्रम या वृद्ध आश्रम या अनाथ आश्रम ,चेरिटेबिल संस्थाएं या शिक्षा संस्थाएं बड़ी तादाद में खुलते जा रहे हैं/ इन सभी समाज सेवी संस्थाओं की बारीकी से जांच होनी चाहिए क्योंकि इनके दांत खाने के कुछ और तथा दिखाने के कुछ और ही होते हैं / इन कर्ण आश्रमों में दान दाताओं को जहाँ एक ओर आयकर में छूट मिलजाती है वहीँ इन आश्रम चलाने वालों को भी सरकार की ओर से अनुदान राशि मिल जाती है और समाज सेवा करने के बहाने पदमश्री पुरूस्कार प्राप्त करने का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है/ कहीं कहीं सुनने में यह जरुर आता है कि इन कर्ण आश्रमों में बच्चों की खरीदफरोख्त भी होती है,जिसकी सच्चाई तो निष्पक्ष जांच से ही सामने आ सकती है/जितनी भी चेरिटेबिल संस्थाएं चाहे वे चिकित्सा से जुडी हों या शिक्षा से या समाजसेवा से सबका एक मात्र उद्देश्य इन संस्थाओं के आधार पर पैसा कमाना ही है,पर्ची जरुर दस पांच रुपियों की बन जायेगी परन्तु उपचार या शिक्षा का मूल्य तो खुले बाजार से भी ज्यादा होता है/ जहाँ एक ओर सरकार को आयकर की चपत लगती है वहीँ जनता बेचारी सस्ते के चक्कर में ज्यादा पैसा दे आती है/ एक बार को खुले बाजार में थोड़ी बहुत रिहायत मिल सकती है परन्तु इन तथाकथित चेरिटेबिल संस्थाओं में नहीं/ फिर जिन लोगों ने जनसेवा के नाम पर उच्च शिक्षा तकनीकी संस्थान खोले हुए हैं,उनमे किसी ने जाकर देखा भी है कि वहां शिक्षा खुले आम बिक रही है,कहने को तो समाजसेवी संस्था है पर रक्त भी समाज का चूसा जा रहा है/ डोनेशन लेने पर प्रतिबन्ध है पर बिना डोनेशन दिए प्रवेश भी नहीं होता/ एक मात्र उद्देश्य कि देश में तकनीकी विकास हेतु तकनीकी उच्च शिक्षा प्राईवेट क्षेत्र में दी गयी थी .परन्तु देश का विकास तो हुआ नहीं बल्कि इन शिक्षा माफियाओं का आर्थिक और सामाजिक विकास जरुर हो गया ,कुछ पदमश्री,कुछ पदमभूषण ,यहाँ तक कि कुछ तो राज्य सभा के सदस्य भी हो गए / अब यह काम मीडिया को करना चाहिए कि इन संस्थाओं की वास्तविकता जनता के सामने लाये वरना किसी दिन शायद यह काम भी विकिलीक्स को ही करना पड़ेगा /
रचना रस्तोगी
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