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भारत का राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री,वित्तमंत्री, गृहमंत्री और तो और मीडिया तक भी एक आम आदमी की बात करता है/ सबसे बड़ा सवाल यह है कि आम आदमी आखिर है कौन ?भारत में एक आम आदमी की क्या परिभाषा है ?क्या यह आम आदमी एक आरक्षित वर्ग का नुमायिन्दा है,क्या यह एक बी पी एल कार्ड की मुफ्त सुविधा लेने वाला,क्या यह एक दस दस बच्चे पैदा करने वाला है,क्या यह सरकारी खजाने पर बोझ सरकारी कर्मचारी है जिसका प्राथमिक काम एवं लक्ष्य ही रिश्वत लेना है ,या फिर आम आदमी वह है जो दुनिया भर के टैक्स अदा करता है और उसके वोट से जीता एक नेता बजाय उसकी सुनने के अमरीका की सुनता है/ आखिर अब यह फैसला आखिर हो ही जाना चाहिए कि भारत में आखिर यह आम आदमी है कौन?जिसके नाम पर सरकार सरकारी खजाने को लूटने की नयी नयी योजना चलाती है और नामकरण संस्कार अपने किसी पूर्व रिश्तेदार के नाम पर कर देती है/ मोहन दास गाँधी तो आज कल नोटों पर छपे हुए हैं ही जिनको रिश्वत में दिया जाता है,हर सरकारी महकमा जहाँ जहाँ रिश्वत का खुले आम आदान प्रदान होता है वहां वहां हमारे गांधीजी की हंसती हुई फोटो एक फ्रेम में गढ़ी टंगी दिख जाती है/ मेहनत से कमाए हुए नोट और रिश्वत से कमाए हुए नोटों में आखिर कुछ तो फर्क होना ही चाहिए/ एक में गांधीजी छपे हैं तो दूसरे में किसी ओर को छाप दो ताकि नोटों नोटों में अंतर तो किया जा सके/
रचना रस्तोगी
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