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जब विकिलीक्स औरों की पोल खोल रहा था तब वह बहुत ही विश्वास पात्र था परन्तु जैसे ही अपने नेताओं की पोल खुलनी शुरू हुई तो तुरंत विकिलीक्स अविश्वसनीय हो गया/ कितने बड़े शर्म की बात है कि जिन नेताओं को भारत की जनता अपने सिर पर बैठाकर, उनके भाषण भरी दोपहर में सुनकर, जिनके लिए आपस में अपने ही देशवासियों से लड़कर संसद या विधान सभा में भेजती है उनका मंत्रिमंडल अमरीका तय करता है/ शायद यही मन मोहन सिंह के साथ भी हुआ है क्योंकि सबसे पहले नरसिम्हा राव की सरकार में भी उनको वित्त मंत्री बिना सांसद हुए बनाया गया था और ठीक इसी प्रकार दो बार उनको प्रधान मंत्री भी लोकसभा के सांसद हुए बिना,केवल मात्र अमरीका के कहने पर ही बनाया गया है/ जनता समझ रही है कि वे मौनी हैं या सोनिया गाँधी के इशारे पर चल रहे हैं परन्तु खेल कुछ और ही है जबकि वास्तव में वे शायद अमरीका के ही नुमायेंदे हैं जो वेतन और सुविधाएं तो भारत के खजाने से लेते हैं और काम अमरीका के लिए करते हैं/ खैर भारतीयों को तो विकिलीक्स का धन्यवाद देना चाहिए कि उसने भारत के नेताओं का चरित्र और देशद्रोह उजागर कर दिया है/
रचना रस्तोगी
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